कहते हैं जब एक औरत शिक्षित होती है तो साथ-साथ उसका परिवार और आसपास का समाज भी शिक्षित हो जाता है. हुनर के मामले में भी ये बात पूरी तरह लागू होती है. अगर यक़ीन न हो, तो फिर लखनऊ की रेखा सोनी से मिल लीजिए.
रेखा पिछले काफ़ी समय से महिलाओं को आत्मनिर्भर बनाने के लिए काम कर रही हैं. वो आर्थिक रूप से कमज़ोर महिलाओं को जूट के बैग, कपड़े के थैले, फ़ाइल फ़ोल्डर, मास्क और स्कूल ड्रेस वगैरह बनाना सिखाती हैं. जिसके ज़रिए ये महिलाएं कुछ आमदनी कर पाती हैं.
पहले ख़ुद सीखा हुनर, अब दूसरों को भी दे रही ट्रेनिंग
रेखा एक हाउस वाइफ़ हैं और उनके पति एक ज्वेलरी शॉप पर काम करते हैं. क़रीब ढाई साल पहले वो ‘नाबार्ड’ और ‘आवाहन संस्था’ की मदद से स्वयं सहायता समूह से जुड़ीं. जिसके बाद उनकी ज़िंदगी ही बदल गई. यहां उन्होंने सिलाई का काम सीखा और काम करना शुरू कर दिया. रेखा ने न सिर्फ़ ख़ुद की आर्थिक स्थिति सुधारी बल्कि दूसरी महिलाओं को भी पैरों पर खड़े होने में मदद की.
रेखा ने अब तक 55 महिलाओं को आत्मनिर्भर बनने में मदद की है. इनमें से ज़्यादातर महिलाएं वो हैं, जिनके परिवारों को लॉकाडाउन के दौरान काफ़ी परेशानियां झेलनी पड़ी थीं. लेकिन रेखा की मदद से इन महिलाओं ने आपदा को अवसर में बदल दिया. अब इन महिलाओं द्वारा बने उत्पाद सरकारी और सार्वजिक क्षेत्र की कंपनियां खरीद रही हैं. जिससे ये महिलाएं रोज़ाना 200 से 300 रुपये तक कमा लेती हैं.
रेखा की मेहनत और लगना का ही नतीजा है कि आज वो अपने सूमह की अध्यक्ष है. लॉकडाउन के दौरान रेखा और स्वयं सहायता समूह की अन्य महिलाओं ने पांच हजार से अधिक मास्क सरकारी विभागों से लेकर विभिन्न दुकानों पर सप्लाई किए. इतना ही नहीं, रेखा अपने ग्रुप के ज़रिए गांव के लोगों तक सरकारी योजनाओं का लाभ पहुंचाने में मदद कर रही हैं. सरकारी पेंशन योजनाओं, मज़दूर कार्ड आदि के फ़ार्म भरवाने से लेकर आवेदन करवाने तक में रेखा गांव वालों की मदद करती हैं.