मिज़ोरम के हाईवे पर ऐसी बहुत सी दुकानें हैं जो बिना दुकानदारों के चलती हैं. ये न सिर्फ़ लोगों तक सामान पहुंचा रही हैं बल्कि पूरी दुनिया को एक सबक भी दे रही हैं. ये सबक है विश्वास का, जिसके भरोसे ये सारी दुकानें चल रही हैं.
मिज़ोरम की राजधानी आईज़ोल से कुछ घंटों की दूरी पर है सेलिंग शहर. यहां के हाईवे पर आपको बिना शॉपकीपर वाली बहुत सी दुकानें देखने को मिल जाएंगी. इनमें ज़रूरत का सामान रखा होता और साथ ही एक बॉक्स, जिसमें लोग स्वयं ही ईमानदारी से उसके पैसे बॉक्स में डाल देते हैं.
वास्तव में ये एक परंपरा है जिसका पालन यहां के स्थानीय लोग वर्षों से करते आ रहे हैं. इसे ‘नगहा लो डावर संस्कृति’ कहते हैं. मिज़ोरम के इस अनोखे कल्चर की तस्वीरें अकसर सोशल मीडिया पर वायरल होती है रहती हैं.
इस बार एक एनजीओ ने इसकी एक तस्वीर अपने ट्विटर अकाउंट पर शेयर की है. उन्होंने इसे शेयर करते हुए लिखा- ‘दुकानें बिना दुकानदारों के. यहां आप सामान ख़रीदें और उसकी क़ीमत पास रखे डिपॉजिट बॉक्स में रख दें. ये दुकानें भरोसे के सिद्धांत पर काम करती हैं.’
Along highway of Seling in Mizoram, many shops without shopkeepers are found without shopkeepers. It is called ‘Nghah Lou Dawr Culture Of Mizoram’ which means ‘Shop Without Shopkeepers’. You take what you want & keep money in deposit box. These shops work on principle of trust! pic.twitter.com/LbG1J8xN1d
— My Home India (@MyHomeIndia) June 19, 2020
सोशल मीडिया पर लोग इस पर मज़ेदार प्रतिक्रिया दे रहे हैं. आप भी देखिए:
It’s quite common here… happy to see that’s it’s happening in India now
— Vinni 🇳🇿 🇮🇳 (@twi_vinni) June 19, 2020
बहोत बढ़िया।
— alok (@monu_pun) June 19, 2020
REALLY PROUD TO BE AN INDIAN .
— ashesh kumar🇮🇳 (@ashesh065) June 19, 2020
Waao… Next trip hmare sister states ki he hai. Pakka dekhenge
— Shivam_agrawal (@Shivam____kumar) June 19, 2020
Love these people’s. हमारे इधर के लोग तो साले डब्बे मैं से पैसे भी लेकेक जायेंगे औ र पैनापल भी.😂
— Amol Sakhare 🕉️ (@amoltsakhare) June 19, 2020
It is a very common sight in almost every corner of Mizoram. This season one can mostly finds vegetables shops along the roads.
— Lxr Amar Changma (@AmarLxr) June 20, 2020
The concept of “Nghah loh dawr” has been practiced among the Mizos for a very long time and is woven inextricably in the Mizo culture. I would like to point out that “lou” in “Nghah lou dawr” above should actually be spelled as “loh”.
— Sakei (@Sakei55736398) June 20, 2020
इस अनोखी संस्कृति के बारे में आपका क्या ख़्याल है, कमेंट कर हमसे भी शेयर करें.
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