महाराष्ट्र के नांदेड़ जिले की हिमायत नगर तालुका के एक गांव ‘तेंभूरनी’ में एक दशक पहले शुरू की गई कोशिश ने आज पूरे नांदेड़ को मच्छर मुक्त बना दिया है. इस वक़्त जब पूरी दुनिया जीका वायरस (मच्छर के काटने से ट्रांसफर होने वाला वायरस) से बचने की कोशिश कर रही है, इस गांव और जिले ने दुनिया के सामने एक मिसाल पेश की है.
नांदेड़ के कई गांवों ने घर के सामने पानी सोखने वाले गड्ढे बनाकर अपने घरों के आस-पास पानी को एकत्र होने से रोकने का अपना तरीका खोज लिया है. इसमें एक चार फीट गहरे गड्ढे को सीमेंट की पाइप से ढककर बनाया जाता है, जो अतिरिक्त पानी को सोख लेता है. पैसे की कमी इस प्रोजेक्ट को रोक न सके इसलिए सरपंच प्रह्लाद पाटिल ने गांधी जी के सिद्धान्त को अपनाते हुए लोगों को श्रमदान के लिए प्रोत्साहित किया और धीरे-धीरे पूरे गांव में यही तरीका अपनाया गया. सरकारी पैसा न होते हुए भी घर-घर में मच्छरों से बचने का यह तरीका कारगर साबित हुआ.
धीरे-धीरे अन्य गांवों में भी यह तकनीक अपनाई गई और इसका एक और फायदा यह हुआ कि इन गांवों में पीने के पानी के हैंडपंप लगने शुरू हुए और अब ये गांव पूरी तरह से धरती के पानी पर निर्भर हैं, जो कि पहले टैंकर के पानी पर निर्भर थे. क्योंकि अब भूजल का स्तर काफी सुधर चुका है.
नांदेड़ जिला परिषद के मुख्य कार्यकारी अधिकारी अभिमन्यु काले ने तेंभूरनी गांव से निकले इस आइडिया को पूरे जिले में लागू करने का निर्णय लिया. ‘महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार योजना’ से मिलने वाला पैसा इन गड्ढों को बनाने में खर्च किया जा रहा है. यहां के स्थानीय निवासी इस गड्ढे को ‘जादुई गड्ढा’ कहते हैं.
नांदेड़ जिला स्वास्थ्य अधिकारी बालाजी शिंदे कहते हैं कि मच्छरों से फैलने वाली और पानी रुकने से होने वाली बीमारियों में 75 फीसदी की कमी देखी गई है. वह बताते हैं कि यहां कई बार सर्वे करने के बावजूद भी मच्छर उत्पन्न करने वाली कोई जगह नहीं पाई गई है.
नांदेड़ जिले से शुरू हुई इस मुहिम को सीखने के लिए हरियाणा, आंध्रा प्रदेश, कर्नाटक, उड़ीसा आदि प्रदेशों की सरकारी टीमें लगातार यहां आ रही हैं. महाराष्ट्र ग्रामीण विकास विभाग ने भी इस मुहिम को पूरे प्रदेश में चलाने को कहा है.
सोचिए कि अगर इस प्रोजेक्ट को देश भर में लागू करने में सफलता मिल जाए तो हमें जीका वायरस या मच्छरों से फैलने वाली बीमारियों से डरने की क्या जरूरत होगी?