मां से ज़्यादा अपने बच्चे को कोई प्यार नहीं कर सकता. वो उनके लिए वो सब करती है, जिसे करने की क्षमता, ताकत और काबिलियत उसने अपने अन्दर महसूस नहीं की थी. और कभी-कभी अपने बच्चों की वजह से उसे ऐसे फ़ैसले लेने पड़ते हैं, जो उसने शायद कभी न लिए हों.
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48 साल की सविता देवी सब्ज़ी बेच कर गुज़ारा करती है, उसके 6 बच्चे हैं, जिनमें से एक बेटी मानसिक रूप से असक्षम है. अपनी बेटी को नुकसान पहुंचने से बचाने के लिए सविता को मजबूरन चेन से बांध कर रखना पड़ता है. इस डर से, कि कहीं वो इधर-उधर न चली जाए या कहीं उसका रेप न हो जाए.
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जहां पूर्णरूप से सक्षम लड़कियों का दिन-दहाड़े रेप या मर्डर हो रहा है, वहां अपनी मानसिक रोगी बेटी के लिए इस मां की चिंता जायज़ है. कई लोग पैरवी करेंगे कि उसे बेड़ियों में बांधने के बजाए, उसे सुधारगृह भेज देना चाहिए, लेकिन ये मां अपनी बच्ची को ख़ुद के अलग नहीं कर सकती.
उसके पति की मौत हो चुकी है, वो अकेले सब्ज़ी बेचते हुए बच्चों को पाल रही है, आमदनी है 150 रुपये प्रतिदिन. सविता के परिवार के लिए पास का शिव मंदिर ही उसका घर है, जहां चेन से बंधी, पत्थरों की टोकरी से जकड़ी हुई उसकी ‘पागल’ बेटी रहती है. उसकी उम्र के बाकी बच्चे दिन भर खेलते हैं, यहां-वहां दौड़ते हैं लेकिन वो इसी शिव मंदिर के बैठती है.
पैदा होने के समय सविता की बेटी स्वस्थ हुई थी, लेकिन 7 साल की उम्र में उसे पहली बार दौरे पड़े. डॉक्टर को दिखाने पर पता चला कि बच्ची मानसिक रूप से बीमार है और किसी को 24 घंटे उसके साथ रहना होगा. लेकिन पैसे की कमी के कारण सविता ने उसका इलाज नहीं करवाया. उसके सिर पर बाकी 6 बच्चों की ज़िम्मेदारी भी थी. गरीबों को मिलने वाली कई सुविधाओं और सरकारी योजनाओं के बारे में सविता को पता नहीं है. केंद्र सरकार की निरामय योजना के तहत 250 रुपए के सालाना प्रीमियम पर एक लाख रुपए का बीमा योजना, ऐसी योजनाओं में से एक है.
गरीब होना एक दुःख है और उस गरीबी में एक मानसिक रूप से निर्भर बच्चे को पालना दूसरा दुःख. सविता चाहती है कि उसकी और उसकी बेटी की कहानी से दुनिया को पता चलना चाहिए कि कुछ लोगों के लिए ज़िन्दगी उतनी कोमल और अच्छी नहीं होती.