सरकारी विभाग में भ्रष्टाचार किस कदर फैला हुआ है उससे आप और हम अच्छी तरह वाकिफ़ हैं. यही बात अगर पुलिस विभाग की हो, तो भ्रष्टाचार की सारी हदें पार होती हुई दिखाई देती हैं. पुलिस डिपार्टमेंट में भ्रष्टाचार की जड़ें रेड लाइट पर खड़े सिपाहियों से शुरू हो जाती है, जिसकी शाखाएं बड़े अधिकारियों के दफ़्तरों तक निकलती है.

ताज़ा मामला मध्य प्रदेश के DIG धर्मेंद्र चौधरी का है, जो 2002 में झाबुआ में एडिशनल सुपरिन्टेन्डेन्ट ऑफ़ पुलिस के पद पर तैनात थे. झाबुआ में सुपरिन्टेन्डेन्ट रहते हुए धर्मेंद्र चौधरी ने प्रदेश के कुख़्यात गैंस्टर लोहार को एक एनकाउंटर में मार गिराया था.

इस एनकाउंटर के लिए धर्मेंद्र चौधरी का नाम सरकार की तरफ़ से प्रेज़िडेंट मेडल के लिए भेजा गया था. पूर्व राष्ट्रपति अब्दुल कलाम आज़ाद ने 2004 में धर्मेंद्र को इस पदक से सम्मानित किया था.

हालांकि इस एनकाउंटर को ले कर कई लोग संदेहस्पद थे, जिसके बाद इसके लिए एक जांच कमिटी बैठाई गई. नेशनल ह्यूमन राइट्स कमीशन ने भी जांच को फ़र्ज़ी पाया, जिसके बाद वर्तमान राष्ट्रपति राम नाथ कोविंद के ऑफ़िस से 20 सितम्बर को इस मेडल को निरस्त कर दिया और धर्मेंद्र से ज़ब्त करने का आदेश दे दिया.