दिवाली के बाद से ही श्रद्धालु छठ की तैयारियों में जुट जाते हैं. स्वच्छता का पर्व, छठ आसान नहीं है. छठ से जुड़ी कई अनोखी बातों में से एक ये भी है कि बिहार के कई मुस्लिम परिवार भी ये व्रत रखते हैं.

Times of India की रिपोर्ट के मुताबिक़, उरेशा ख़ातून, शाहीना, नजमा और 50 अन्य परिवार दशकों से चूल्हे बनाने का काम करते आ रहे हैं.
मुझे चूल्हे बनाना बहुत पसंद है. जब कोई काम की तारीफ़ करता है तो अच्छा लगता है. मैं शुद्धता को ध्यान में रखते हुए दशहरे के बाद से और छठ पूजा ख़त्म होने तक मैं सिर्फ़ चावल, दाल और रोटी खाती हूं.
-उरेशा

51 वर्षीय इमरान चूल्हों की शुद्धता का ख़ास ध्यान रखते हैं और ट्रेडिशनल तरीके से चूल्हे बनाते हैं.
ये चूल्हे आत्मीयता और बहुत ध्यानपूर्वक बनाए जाते हैं. छठ बिहार का बहुत बड़ा पर्व है और मैं लाभ के लिए या बिज़नेस करने के लिए चूल्हे नहीं बनाता. हम दाम को लेकर भी तोल-मोल नहीं करते.
-इमरान
एक चूल्हा 60 से 100 रुपये तक का आता है. चूल्हाबनाने वाले सुपर मार्केट या मॉल्स को चूल्हा बेचने लगे हैं क्योंकि ख़रीदारों को वहां से ख़रीदने में सुविधा होती है.
मेरा पूरा परिवार सारे काम छोड़कर चूल्हा बनाने का ही काम करता है. आम दिनों में हम कपड़े लेकर एल्युमिनियम के बरतन बेचते हैं.
-नजमा

श्रद्धालुओं के लिए चूल्हा बनाकर हम ऊपरवाले के और क़रीब हो जाते हैं. हम बहुत क़िस्मतवाले हैं कि हमें ये काम करने को मिला.
-शाहीना
इस बार बाढ़ की वजह से चूल्हा बनाने वालों को सोन और पुनपुन नदी से मिट्टी लाने में बहुत दिक्कतें आईं पर उन्होंने अपना काम बंद नहीं किया.