देश में एक तरफ़ जहां धर्म के नाम पर देशवासियों को आपस में लड़वाने की साज़िशें रची जा रही हैं, वहीं दूसरी तरफ़ मोहब्बत की कहानियां इंसानियत में विश्वास भी क़ायम कर रही हैं.
ऐसी ही एक कहानी है संजन कुमार विश्वास और अशफ़ाक़ अहमद की.
अशफ़ाक़ ने अपने हिन्दू सहकर्मी संजन का अंतिम संस्कार पूरे रीति-रिवाज़ के अनुसार किया. उन्होंने अपनी दाढ़ी और बाल भी उतरवाए.
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अशफ़ाक़, उनकी पत्नी और बेटे ने 11 दिनों का शोक़ भी रखा. संजन 2005 तक बनेरहाट हाई स्कूल में शिक्षक थे, अशफ़ाक़ अभी भी वहीं पढ़ाते हैं.
अशफ़ाक़, संजन को अपना मार्गदर्शक मानते हैं और संजन ने उनकी काफ़ी सहायता की थी.
TOI के अनुसार अशफ़ाक़ ने कहा,
स्कूल की स्वर्ण जयंति के दिन मेरी वहां नौकरी लगी थी. मेरे धर्म के कारण कई लोग मेरी नियुक्ति से ख़ुश नहीं थे लेकिन संजन मेरे साथ थे. उन्होंने मेरा साथ दिया और मुझे अपने घर में रहने की जगह भी दी थी. उन्हें मानवता में यक़ीन था, धर्म में नहीं.
अशफ़ाक़ के अपने पिता जीवित हैं लेकिन इससे उनका निर्णय नहीं बदला. अशफ़ाक़ का परिवार भी इस निर्णय में उनके साथ खड़ा था.
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अशफ़ाक़ के शब्दों में,
मैंने वही किया जो उचित था और मैंने ये ऐसे इंसान के लिए किया जिनका सम्मान किया जाना चाहिए.
मोहब्बत की ये कहानी मिसाल है उन लोगों के लिए, जो अपने दिलों में नफ़रत का बीज बो चुके हैं.