सोशल मीडिया पर सड़क दुर्घटनाओं के शिकार हुए लोगों की मदद करने की गुहार लगाने वाली पोस्ट पर शेयर और लाइक्स की कोई कमी नहीं होती. लेकिन असल ज़िंदगी में जैसे लोगों न तो मदद करना पसंद है, और न ही वो इसमें किसी भी तरह की मदद को शेयर करना चाहते हैं. इसका उदाहरण हाल ही में लुधियाना में देखने को मिला, जहां 4 बच्चों की जान सड़क दुर्घटना के बाद सिर्फ़ इसलिए चली गई, क्योंकि वहां से गुज़रते लोगों में से किसी ने भी उनकी मदद नहीं की.

indiatimes

4 दिन ही बीते थे इस बात को, कि एक और ख़बर ने पूरे देश को शर्म से झुका दिया. मामला मैसूर का है, जहां एक पुलिस वाले की कार बस से टकरा गई. ये टक्कर इतनी तेज़ थी कि कार सड़क के दूसरे हिस्से तक पहुंच गई.

इस कार में एक ड्राइवर और एक पुलिस इंस्पेक्टर सवार थे. ड्राइवर की मौत तुरंत हो गई, लेकिन दुर्घटना के बाद भी इंस्पेटर महेश कुमार की सांसे चल रही थीं. करीब 30 मिनट तक वो इसी हालत में तड़पते रहे. शरीर में लगी चोट के कारण उनका खून बहे जा रहा था. लेकिन तमाशबीनों की तरह वहां भीड़ खड़ी उन्हें देख रही थी. किसी ने भी उनकी मदद करने की कोशिश नहीं की.

इतना ही नहीं, लोग अपने मोबाइल निकाल कर तस्वीरें खींच रहे थे. सैंकड़ों लोग इस रास्ते से गुज़रे, लेकिन किसी को भी तड़पते महेश पर दया नहीं आई. मदद तो दूर की बात है, किसी ने एम्बुलेंस और पुलिस को भी जानकारी देना ज़रूरी नहीं समझा.

thenewsminute

इस हादसे के 30 मिनट बाद वहां पुलिस पहुंची और आनन-फ़ानन में महेश को अस्पताल ले जाया गया, जहां डॉक्टर्स ने उन्हें मृत घोषित कर दिया और मौत का कारण ज़्यादा खून बह जाना बताया.

अगर उन सैकड़ों लोगों में से किसी एक ने भी उनकी मदद कर दी होती, तो महेश शायद इस दुनिया में होते.

youtube

एक बात हम सब को समझनी चाहिए कि सड़क पर हम और हमारे अपने भी चलते हैं. खुदा न करे, लेकिन कभी किसी अपने साथ ऐसा हादसा हो और मदद न मिल पाने के कारण उनकी मौत हो जाए, तब हमारे ऊपर क्या बीतेगी? बस इतना कह रहे हैं कि जब भी आप ऐसा कोई हादसा देखें, तो इस बात को एक बार सोच कर देखिएगा. शायद आप बिना मदद किए वहां से न जा पाए.