अगर आप सोशल मीडिया पर एक्टिव रहते हैं या न्यूज़/अख़बार पढ़ते हैं तो पिछले कुछ सालों से ग्लोबल वार्मिंग के खतरों के बारे में आप अक्सर सुनते आ रहे होंगे. बढ़ती आबादी के खतरों की तरह ही ग्लोबल वार्मिंग के ख़तरे भी दिन प्रतिदिन बढ़ते जा रहे हैं. ये भी आप जानते ही होंगे कि ग्लोबल वॉर्मिंग की वजह से जो ग्लेशियर्स पिघल रहे हैं, उनसे समुद्र के स्तर में बढ़ोतरी भी होती है.
हालांकि इस संदर्भ में नासा ने एक उपलब्धि हासिल की है.नासा के वैज्ञानिकों ने एक नया टूल बनाया है. इस टूल का नाम ग्रेडियेन्ट फ़िंगरप्रिंट मैपिंग (GFM) है. इस टीम के एक सदस्य डॉ सुरेंद्र अधिकार के मुताबिक, लोग कई बार ग्लोबल वार्मिंग की जटिल प्रक्रिया को समझ नहीं पाते हैं. लेकिन इस टूल के साथ ही लोग अपने शहर पर होने वाले प्रभाव को देख सकते हैं.
नासा के जेट Propulsion लैब के शोधकर्ताओं ने इस टूल को 293 मुख्य शहरों में अप्लाई किया है. इन शहरों में कर्नाटक का मैंगलोर शहर भी शामिल है. दुनिया का 75 प्रतिशत साफ़ पानी ग्लेशियर्स में स्टोर होता है. इसका सबसे प्रमुख स्त्रोत ग्रीनलैंड और अंटार्कटिका है. इन दोनों ही जगहों पर बर्फ़ का पिघलना सी लेवल को बढ़ाता है. इस टूल की मदद से ये पता लगाया जा सकता है कि बर्फ़ की मोटाई के हिसाब से स्थानीय Sea level कितना संवेदनशील है और कितनी Ice Sheet इससे प्रभावित होती है.
इस टूल की सेंसिटीविटी को ग्रेडियेंट के टर्म्स में (-ds/dH) नापा जा सकता है. इन्हें चार बैंड्स (-4 to -2, -2 to 0, 0 to 2, 2 to 4) में बांटा गया है. दक्षिणी ग्रीनलैंड और पश्चिमी अंटार्कटिका की बर्फ़ की मोटाई घटने पर मैंगलोर के लिए ख़तरा साबित हो सकता है. न्यूयॉर्क के लिए ग्रीनलैंड का उत्तरी और पूर्वी हिस्से का पिघलना घातक साबित हो सकता है. वहीं लंदन के लिए ग्रीनलैंड का उत्तरी पश्चिमी हिस्सा पिघलने से वहां के स्थानीय समुद्र के लेवल में बढ़ोतरी की संभावना है.
वहीं दक्षिण एशिया के कई शहरों पर रिसर्च करने के बाद ये पाया गया कि कोलंबो, कराची और चित्तागौंग वो शहर हैं जिन पर ग्रीनलैंड और अंटार्कटिका के ग्लेशियर्स के पिघलने का सबसे ज़्यादा असर पड़ सकता है. ये रिसर्च साइंस एडवांस नाम के जर्नल में प्रकाशित हुई है.