गरीब परिवार से ताल्लुख रखने वाले 22 वर्षीय अक्षय मारे एक राष्ट्रीय स्तर बॉक्सिंग मेडलिस्ट हैं. ग़रीबी के चलते उनके पास इतने भी पैसे नहीं हैं कि वो एक अच्छी डाइट ले सकें, जो कि एक बॉक्सर के लिए बेहद ज़रूरी होती है.

दत्तावाड़ी इलाक़े के कई लोग शायद जानते भी नहीं होंगे कि उनके घर अख़बार देने आने वाला अक्षय एक राष्ट्र स्तरीय बॉक्सर है. अक्षय राष्ट्रीय स्तर पर ब्रोंज़ मेडल जीत चुका है और चार बार राज्य स्तर पर गोल्ड मेडल जीत चुका है.

अक्षय एक कमरे के घर में रहता है और भोर से ही अख़बार बांटने निकल पड़ता है. अक्षय इस घर में अपने माता-पिता और दो भाइयों, तुषार और विशाल के साथ रहता है. वप पिछले आठ साल से अख़बार बांट रहा है. उसका बड़ा भाई विशाल दूध बेचने का काम करता है.

अक्षय ने इतनी सी उम्र में कई मेडल जीते हैं, लेकिन ये मेडल उसकी ज़िन्दगी में कोई अंतर नहीं ला पाए हैं. उसके हालातों ने उसे एक अख़बार बांटने वाला बना दिया है. जिस वक़्त उसे ट्रेनिंग करनी चाहिए, उस वक़्त वो घर-घर जाकर अख़बार बांटता है.

वो बताता है कि जब वो मैच के लिए असम गया था, तब भी उसे काम की चिंता थी, क्योंकि अगर उसके ग्राहक छूट गए, तो घर चलना मुश्किल हो जायेगा. जब उसेक भाई ने उसे आश्वासन दिया, तब जाकर उसकी चिंता दूर हुई.

उसकी सुबहें काफ़ी भाग-दौड़ भरी होती हैं. वो काम ख़त्म कर के अरुण कुमार वैद्य स्टेडियम जाकर प्रैक्टिस करता है. उसके कोच विजय कोचर उसे अपनी फ़िटनेस पर काम करने में मदद करते हैं.

अक्षय के असिस्टेंट कोच राकेश भानु कहते हैं कि उन्हें अक्षय की हालत देख कर बहुत बुरा लगता है. वो बहुत टैलेंटेड है. उसे एक अच्छी नौकरी मिल जानी चाहिए ताकि उसे आर्थिक मदद मिल सके.

अक्षय के पास इतने भी पैसे नहीं हो पाते कि वो अच्छे बॉक्सिंग ग्लव्स ख़रीद सके. अपने कोच और दोस्तों की मदद पर आश्रित होकर वो जैसे-तैसे बॉक्सिंग में आगे बढ़ने के लिए लगातार कोशिश कर रहा है.

इन दिनों अक्षय सितंबर में होने वाली नेशनल प्रतियोगिता की तैयारी कर रहा है. उसे भारतीय सेना के Bombay Engineering Group (BEG) में नौकरी मिलने की भी उम्मीद है.

अक्षय कहता है कि अगर उसको वहां नौकरी मिल गयी, तो वो अपना घर आराम से चला पायेगा और उसे ट्रेनिंग छोड़ कर अख़बार नहीं बेचने पड़ेंगे.