ये बात हर किसी को पता है कि कैनाबिस के पेड़ों के साथ इंसानों को नाता काफ़ी पुराना है. लेकिन कितना? ये किसी को नहीं पता. हाल ही में हुई रिसर्च से पता चला है कि 500 ईसा पूर्व में, चीन के पामीर पहाड़ों में शव यात्रा अनुष्ठान के लिए इन पेड़ों को जलाया जाता था. हम ये तो नहीं जानते कि ऐसा क्यों था, लेकिन इतना कह सकते हैं कि वो सस्ता माल तो नहीं फूंकते होंगे.  

साइंस एडवांस में छपी एक रिसर्च के मुताबिक उनके अवशेषों में ऐसे रासायनिक तत्व मिले जिससे पता चलता है कि वो हाई लेवल का टेट्राहाइड्रोकैनाबिनोल (टीएचसी) लेते थे, जो कि मैरियोआना का एक साइकोएक्टिव कंपाउंड है.  

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इससे पहले कैनाबिस के तने और बीज यूरेशिया के आसपास कुछ दफ़न इलाकों में मिले थे. अब इनका सेंट्रल एशिया जैसी जगहों पर मिलना ये बताता है कि कैनबिस का इस्तेमाल सिर्फ़ एक सीमा के लोग नहीं करते थे, बल्कि इसे दुनिया भर में इस्तेमाल करा जाता था. 

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हवाई यूनिवर्सिटी के बॉटनी प्रोफ़ेसर मार्क मर्लिन कहते हैं कि लैब में टेस्ट के दौरान पूर्वजों के अवशेषों में साइकोएक्टिव तत्व का मिलना, अपने आप में एक नई खोज है. उन्होंने कहा कि ऐसा इसलिए किया जाता था ताकि ज़िंदगी के बाद भी शरीर का इस्तेमाल किया जा सके.  

गर्म पत्थरों में लड़कियां रख कर और फिर कैनाबिस बिछाकर उसमें से धुआं निकाला जाता था. 2500 साल पुराने जिरज़नकाल कब्रिस्तान में आठ कब्रों से इन अवशेषों को निकाला गया. हाई THC से पता चलता है कि हमारे पूर्वज हाई कैनाबिस की खेती करते थे. तब वो पहाड़ों में बैठे कर हाई होते थे और एक अलग ही दुनिया में पहुंच जाते थे. जैसा कि अब कसोल में होता है.