अगर आप घर पर किसी प्लास्टिक की कुर्सी पर बैठे हों, या घर में आपके प्लास्टिक की कुर्सी हो, तो एक काम कीजिए. ज़रा उसका ब्रांड चेक कीजिए. पूरी संभावना है कि आपकी कुर्सी का ब्रांड ‘नीलकमल’ (Nilkamal) निकलेगा. इतने यक़ीन से इसलिए कह रहा हूं, क्योंकि ज़्यादातर लोग नीलकमल ब्रांड की कुर्सी ही लेते हैं. दुक़ान वाले भी बड़ा पीट-पीटकर इसकी मज़बूती के दावे करते हैं.
मगर क्या आप जानते हैं कि नीलकमल के रूप में जो ब्रांड आज हमारे सामने हैं, उसकी शुरुआत आज से क़रीब 80 साल पहले एक बटन बनाने वाली छोटी सी कंपनी के रूप में हुई थी और आज ये ब्रांड क़़रीब 1800 करोड़ रुपये का मार्केट कैप दर्ज कर चुका है.
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आज़ादी से पहले बृजलाल ब्रदर्स ने की थी शुरुआत
साल 1943, आज़ादी के पहले का वो दौर, जब भारत एक नई शुरुआत की ओर बढ़ रहा था. उसी वक्त गुजरात के दो भाई भी मुंबई पहुंंचकर कुछ नया करने जा रहे थे. ये थे बृजलाल ब्रदर्स (Brijlal brothers). दोनों भाई गुजरात में मेटल के बटन्स बनाते थे. लेकिन जब उनके पार्टनर ने उनका साथ छोड़ दिया. ऐसे में उन्होंने मुंबई आकर प्लास्टिक के बटन बनाने का काम शुरू कर दिया. इसके लिए इन्होंने एक मशीन भी ख़रीदी.
शुरुआत में मुनाफ़ा कम था और लागत ज़्यादा. मगर दोनों भाइयों को अपने इस बिज़नेस पर भरोसा था. ऐसे में उन्होंने इसे सही तरीक़े से लोगों तक पहुंचाने का काम शुरू किया. इस काम में वो सफ़ल भी हुए. दरअसल, उनके ये प्लास्टिक बटन, उस वक़्त चलने वाले मेटल बटन्स की तुलना में हलके थे और उन्होंने लोगों को इसे आज़माने के लिए प्रेरित किया.
बृजलाल ब्रदर्स ने जैसा सोचा था, वैसा ही हुआ. लोगों को ये नए बटन पसंद आ गए. इससे उनका व्यापार और हौसला दोनों बढ़ा. अब उन्होंने अपने बिज़नेस को आगे बढ़ाने का सोचा.
प्लास्टिक के ज़रिए घर-घर पहुंचने का बनाया लक्ष्य
व्यापार बढ़ा तो मुनाफ़ा भी और इसके साथ ही दोनों भाइयों के सपने भी बड़े हो गए. अब उनका लक्ष्य पूरी तरह से प्लास्टिक के कारोबार में उतरने का था. उन्होंने प्लास्टिक के बटन से लेकर प्लास्टिक के घरेलू सामान जैसे मग और कप तक हर चीज़ में अपना हाथ आज़माया. इस काम में उन्हें सफ़लता भी मिलने लगी. इसके बाद 1964 तक बृजलाल ब्रदर्स पूरी तरह से प्लास्टिक के कारोबार में उतर चुके थे. उन्होंने पानी के जमा करने वाले ड्रम जैसे बड़े प्लास्टिक उत्पादों को बनाने के लिए बड़ी मशीनें खरीद लीं.
मज़बूत नींव पर तैयार हुई नीलकमल ब्रांड की बुलंद इमारत
बृजलाल बंधुओं ने व्यापार की एक मज़बूत नींव तैयार कर दी थी. अब उस पर एक बुलंद इमारत तैयार करने की ज़िम्मेदारी अगली पीढ़ी पर थी. ये काम किया उनके बेटों वामन पारेख और शरद पारेख ने. उन्होंने 1981 में नीलकमल प्लास्टिक का गठन किया. दरअसल, नीलकमल एक प्लास्टिक निर्माण इकाई थी, जिसे उन्होंने 1970 में खरीदा गया था. उन्होंने इसका नाम नहीं बदला और पुराने नाम का ही इस्तेमाल करने का फ़ैसला किया.
2005 में, कंपनी ने रिटेल सेक्टर में एंट्री की. अब उन्होंने नए प्रोडेक्ट्स शामिल किए. ये थे प्लास्टिक फर्नीचर. उन्होंने इसका निर्माण और खुदरा बिक्री शुरू कर दी है. इससे पहले, कंपनी विशुद्ध रूप से दूध कारखानों और दुकानों को दूध के बक्से जैसे उत्पादों की बी2बी बिक्री से निपटती थी.
80 साल में किया 1800 करोड़ का सफ़र
कड़ी मेहनत ने इस कंपनी को आज बाज़ार में काफ़ी ऊंचा उठा दिया है. लोगों की नज़रों में भी ये ब्रांड काफ़ी ऊंचा है. यही वजह है वो लगातार तरक्की करते रहे. साल 1991 में सूचीबद्ध होने के बाद से इसके राजस्व में भारी उछाल देखा गया. 27 साल में इनका राजस्व 5.09 करोड़ रुपये से बढ़कर 2,160 करोड़ रुपये हो गया.
मार्च 2018 में फ़ाइनेंशियल ईयर के आख़िर में कंपनी ने 123 करोड़ रुपये का लाभ और 1,800 करोड़ रुपये का मार्केट कैप दर्ज किया था. कंपनी ने इक्विटी पर 14.5 फीसदी का रिटर्न दिया.
वो कहते हैं न, मंज़िल लाख दूर सही, मगर शुरुआत तो एक छोटे से कदम से ही होती है. नीलकमल ब्रांड का 80 सालों का सफ़र इस बात का जीता-जागता उदाहरण है. इस कंपनी ने लोगों को नयापन भी दिया और प्रोडेक्ट की क्वालिटी का भरोसा भी. यही वजह है कि वो आज इस मुक़ाम पर पहुंची. आज नीलकमल लिमिटेड कंपनी की बागडोर बृजलाल ब्रदर्स की तीसरी पीढ़ी संभाल रही है. उनके पोते मिहिर पारेख इस कंपनी के एग्जीक्यूटिव डायरेक्टर हैं.