जंगल की आग के बारे में हम सब जानते हैं, सुनते आए हैं. पेड़ों के आपस में घर्षण (Friction) से जंगल में अपने-आप आग लग जाती है, जिसे दावानल कहते हैं.


एक रिपोर्ट के मुताबिक, मार्च 2019 से मई 2019 के बीच उत्तराखंड में 2521 हेकटेयर जंगल जलकर खाक हो चुके हैं.  

Times of India

सूर्यगांव, नैनीताल से 30 किलोमीटर स्थित गांव के रहनेवाले विनोद चंद ने Times of India को बताया, 

इस गर्मी में तीसरी बार गांव के पास के जंगल में आग लगी है. हम गांववालों ने आपस में मिलकर हमारे घरों तक आग को फैलने से रोका. उस दिन कई घरों में खाना नहीं बना था. खाना बनाने की लकड़ी नहीं थी और सभी के पास एलपीजी नहीं है.
The Statesman

उत्तराखंड के कई इलाकों में पशुओं द्वारा इंसानों के घरों के आस-पास भागकर आने की घटनाएं भी रिपोर्ट की गई थी.


28 मई को 161 हेकटेयर में फैले 94 जंगलों में आग लग गई थी. हालात इतने विषम हो गए थे कि एक सरकारी हेलीकॉपटर को चमोली के गोपेश्वर में इमरजेंसी लैंडिंग करनी पड़ी थी क्योंकि पायलट को धुंए की वजह से कुछ भी नहीं दिख रहा था.   

रिपोर्ट्स के मुताबिक, 16 सालों में ये दूसरी सबसे भयंकर आग है.


2016 में 4,538 हेकटेयर जंगल आग की भेंट चढ़ गए थे. इस बार की आग को देखते हुए लग रहा कि ज़्यादा परिवर्तन नहीं आया है.  

2000 से अब तक उत्तराखंड ने 44, 518 हेकटेयर जंगल खो दिए हैं. पर आज भी जंगल की आग को रोकने के लिए इस्तेमाल की जाने वाली तकनीक में कोई बदलाव नहीं आया है.

Times of India

Times of India की रिपोर्ट के मुताबिक, जंगल की आग को रोकने के लिए इस्तेमाल किए जाने वाले तरीके किसी काम के नहीं हैं औऱ उनसे आग की रोकथाम नहीं होती. जंगल की आग को रोकने के लिए एक अलग पद, Chief Conservator of Forests बनाया गया था. एक पूर्व Chief Conservator of Forests ने Times of India को बताया,  

मेरे पास सर्वे या शोध के लिए बजट बनाने का अधिकार नहीं था. जंगल की आग को मैनेज करने के लिए Long Term Policy की ज़रूरत है पर ऐसा कुछ भी नहीं किया गया. 

पहचान छिपाने की शर्त पर एक अफ़सर ने Times of India को बताया

हमारे पास सिर्फ़ 5 ड्रोन है. एक पूरे राज्य पर सिर्फ़ 5 ड्रोन नज़र कैसे रख सकते हैं? 
Wikipedia

ड्रोन्स ने नैनीताल और अल्मोड़ा के जंगलों में आग की 100 घटनाओं के बारे में अफ़सरों को इत्तिला किया.


एक सर्विस भी चालू की गई, जिसके तहत आम जनता भी जंगल की आग के बारे में रिपोर्ट कर सकती है. 28 मई को 94 घटनाएं रिपोर्ट की गई, पर जंगल की आग के बारे में बताने के लिए जो टोल फ़्री नंबर शुरू किया गया है, उस पर सिर्फ़ 15 फ़ोन आए. जल्द से जल्द कार्यवाही की उम्मीद में आम जनता लोकल अधिकारियों को ज़्यादा रिपोर्ट करती है.   

Times of India

इस साल सोशल मीडिया द्वारा आग की घटनाओं की जानकारी देने की सुविधा भी शुरू की गई थी पर फ़ेसबुक, ट्विटर और इंस्टाग्राम मिला कर सिर्फ़ 10 लोगों ने ही एलर्ट भेजा.


पद्मश्री सम्मानित, पर्यावरण विद, शेख पाठक का कहना है कि बढ़ते पारा और सर्दी में न के बराबर बारिश की वजह से लैंडस्केप में नमी कम हो गई है, जिसकी वजह से अक़सर आग लगती है.