सड़ती व्यवस्था है और उसकी बदबू में रहने को मजबूर ज़िम्मेदार नागरिक होते हैं. वो नागरिक जिनकी अव्यवस्थित ज़िंदगी एक व्यवस्थित देश का सपना साकार करती है. कोरोना वायरस के चलते लॉकडाउन में लाखों प्रवासियों को हमने इसी व्यवस्था में पिसते देखा है. ये सिलसिला अभी भी जारी है. ताज़ा उदाहरण ओडिशा के जगतसिंहपुर ज़िले का है. यहां एक 28 साल के शख़्स को एक हफ़्ते तक शौचालय के अंदर रहने को मजबूर होना पड़ा है.  

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एक अधिकारी ने बताया कि तमिलनाडु से लौटे 28 साल के एक शख़्स ने संस्थागत क्वरांटीन में कुछ दिन ज़्यादा गुज़ारने का अनुरोध किया था, जिसे ठुकरा दिया गया. उसके पास सेल्फ़ आइसोलेशन में रहने के लिए कोई जगह नहीं थी, ऐसे में उसे एक हफ़्ते शौचालय में रहना पड़ा.   

अधिकारी ने बताया कि मानस पात्रा को सरकार द्वारा चलाए जा रहे अस्थायी चिकित्सा शिविर से छुट्टी दे दी गई, जहां वो सात दिनों तक रहे. यहां अनिवार्य रूप से सात दिन गुज़ारने के बाद उन्हें अगले सात दिन होम आइसोलेशन में रहने के लिए कहा गया. इस पर पात्रा ने इंस्टीट्यूशनल क्वारंटीन सेंटर में कुछ और दिन गुज़ारने के लिए अनुरोध किया, क्योंकि जमुगांव में उसके घर में पर्याप्त जगह नहीं है, लेकिन उसे इसकी अनुमति नहीं मिली.   

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ऐसे में जब उनके पास कोई विकल्प नहीं बचा तो उन्होंने अपने घर के क़रीब बने स्वच्छ भारत शौचालय में आश्रय लिया. उनके घर में बुज़ुर्ग़ माता-पिता समेत परिवार के अन्य सदस्य रहते हैं.   

पात्रा ने बताया कि, ‘मैंने अपनी क्वारंटीन अवधि बढ़ाने के लिए स्थानीय अधिकारियों से अनुरोध किया था. हालांकि, उन्होंने इसे अस्वीकार कर दिया. ऐसे में परिवार के सदस्यों की सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए मुझे शौचालय में रहने को मजबूर होना पड़ा.’  

उसने 9 से 15 जून तक 8 फ़ुट के नवनिर्मित शौचालय में सात दिन बिताए. इस शौचालय का इस्तेमाल पात्रा के परिवार ने अब तक शुरू नहीं किया है. नौगांव के खंड विकास अधिकारी रश्मि रेखा मलिक ने कहा कि मामले की जांच की जा रही है.