आजकल की मतलबी दुनिया में कौन किसका होता है, लेकिन ओडिशा के अमनापली से एक ऐसी घटना सामने आई है, जहां एक विधायक रमेश पटुआ ने मानवता की मिसाल पेश की है. इस क्षेत्र से बीजेडी विधायक, रमेश ने वो काम कर दिखाया जिसे करने से समाज के लोगों ने जाति से बहिष्कृत होने के डर से मना कर दिया था.

indiatimes

दरअसल इस गांव में एक भीख मांगने वाली महिला की मौत हो गयी थी और उसे कन्धा देने के लिए कोई आगे नहीं आया. जब एक दिन बाद विधायक रमेश को इस बात का पता चला, तो उन्होंने न सिर्फ़ उस बेसहारा महिला के शव को कंधा दिया, बल्कि उसके अंतिम संस्कार की पूरी प्रक्रिया भी निभाई. गांववालों ने साफ़ तौर पर इंकार कर दिया था कि वो न तो इस महिला के शव को कंधा देंगे और न ही उसके जनाजे में शामिल होंगे. जो भी इसमें शामिल होगा उसे जाति और समाज से बहिष्कृत कर दिया जाएगा.

navbharattimes

बताया जा रहा है कि महिला भीख मांगती थी और अपने देवर के साथ एक झोपड़ी में रहती थी. मगर उसका देवर भी इतना ज़्यादा बीमार था कि वो भी उसका अंतिम संस्कार कर पाने की स्थिति में नहीं था. इसी कारण गांव के लोगों ने उसके शव को हाथ लगाने से भी इंकार कर दिया था. आज समाज जाति और सम्प्रदाय को लेकर इतना कट्टर हो चुका है कि उसे किसी के मृत शरीर को छूने से भी दिक्कत है.

navbharattimes

इस घटना के बाद बीजेडी विधायक रमेश पटुआ ने कहा कि ‘गांवों में ऐसी धारणा है कि अगर कोई दूसरी जाति के व्यक्ति के शव को छूता है तो उसे अपनी जाति से बहिष्कृत कर दिया जाता है. जब मैंने लोगों से अंतिम संस्कार करने को कहा, तो उन्होंने यह कहकर मना कर दिया कि अगर वो इस महिला के शव को छुएंगे तो उन्हें उनकी जाति से निकाल दिया जाएगा. इसलिए मैंने अपने बेटे और भतीजे को बुलाकर उसका अंतिम संस्कार किया.’

ndtv

46 वर्षीय रमेश पटुआ रेंगाली (संबलपुर) विधानसभा से बीजू जनता दल के विधायक हैं. रमेश ने इस नेक काम के ज़रिये समाज के उन लोगों को आईना दिखाने का काम किया है जो जाति और सम्प्रदाय के नाम पर लोगों को बांटने का काम करते हैं. अगर देश की राजनीति में आज भी रमेश जैसे लोग हैं, तो हम उम्मीद करते हैं कि एक दिन ये समाज और उसमें रहने वाले लोगों की सोच ज़रूर बदलेगी.

indiatimes

ऐसी ही एक घटना पिछले महीने असम में भी देखने को मिली थी. जब एक बुज़ुर्ग की मौत के बाद, उसका परिवार अंतिम संस्कार के लिए सक्षम नहीं था, तो विधायक रूपज्योति कुर्मी ने उस बुज़ुर्ग के शव को न सिर्फ़ कन्धा दिया, बल्कि उसका स-सम्मान अंतिम संस्कार भी किया.