देश के कोने-कोने से आये दिन ये ख़बरें सुनने को मिलती रहती हैं कि दहेज में कार न देने पर दूल्हे ने शादी करने से मना किया. कहीं दहेज़ में सोने की मांग की जाती है, तो कहीं दहेज देने से मना करने पर गोलियां तक चल जाती हैं. 21वीं सदी में जहां कई मासूम लड़कियां दहेज लोभियों की शिकार हो रही हैं. वहीं ओडिशा के केन्द्रपाड़ा ज़िले के एक स्कूल टीचर ने दहेज जैसी कुरीति को दरकिनार करते हुए ससुराल पक्ष से भेंट स्वरूप 1001 पौधे देने की मांग की. ताकि इन पौधों से शहर में फैल रहे प्रदूषण को रोका जा सके.
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सरोजकांत केन्द्रपाड़ा ज़िले के चौडाकुलाता गांव के जग्गनाथ विद्यापीठ स्कूल में साइंस टीचर हैं. उनकी पत्नी रश्मीरेखा भी टीचर हैं. 22 जून सरोजकांत और रश्मीरेखा की बेहद शानदार तरीक़े से शादी हुई. जबकि शादी से एक दिन पहले 21 जून को सरोजकांत के ससुर ने उनके घर पर 1001 पौधे भेजवाए, जिनमें से 700 पौधे आम और बबूल के थे. पौधों को उन्होंने गांव के लोगों में बांट दिए और जो पौधे बचे थे उनको शादी में आये मेहमानों को दे दिए.
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सरोजकांत जब बारात लेकर बेलाना पहुंचे तो, न तो उन्होंने तेज़ आवाज़ वाला बैंड बजवाया, और न ही ख़ुशी में पटाख़े जलाये गए. शादी में भी तेज़ आवाज़ वाला DJ भी नहीं चलाया गया. इस शादी को पूरे तरीके से इको-फ्रेंडली बनाया गया था. शादी सभी रश्मों रिवाज़ के साथ बेहद साधारण तरीके से संपन्न हुई.
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इस बारे में सरोजकांत का कहना है कि ‘मैंने ख़ुद से ये वादा किया था कि वो कभी दहेज नहीं लेंगे क्योंकि मैं बचपन से ही प्रकृति प्रेमी रहा हूं. शादी से पहले जब ससुर जी ने दहेज की चर्चा की तो मैंने उनसे भेंट स्वरूप 1001 पौधे देने की मांग की. ये बात सुनकर मेरे ससुराल वाले जितने हैरान थे, उतने ही ख़ुश भी थे. मैं चाहता था कि हमारी शादी बेहद साधारण तरीके से हो. जबकि एको-फ़्रेंडली शादी करना मेरे दिमाग़ में पहले से ही था. मैं अपनी शादी के ज़रिये लोगों को पर्यायवरण और ग्लोबल वॉर्मिंग को लेकर जागरुक करना चाहता था.
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सरोजकांत के ससुराल वालों का कहना है कि, उनकी ऐसी मांग से पहले तो हम हैरान हुए थे. लेकिन उतने ही खुश भी थे. हमें अपने दामाद पर गर्व है कि वो इतनी अच्छी सोच रखते हैं. पर्यायवरण को बचाने की उनकी ये सोच बेहद क़ाबिल-ए-तारीफ़ है.
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काश! इस देश का हर व्यक्ति ऐसी ही सोच रखता तो दोष से दहेज की कुप्रथा को ख़त्म किया जा सकता है और देश की बेटियां भी सुरक्षित होंगी.