ग्लोबल वॉर्मिंग आज किसी एक देश की समस्या नहीं, बल्कि वैश्विक समस्या बन चुकी है. वर्तमान में पूरी दुनिया इस समस्या से जूझ रही है. ग्लोबल वॉर्मिंग को लेकर भले ही विश्व समुदाय मंथन कर रहा हो, लेकिन इस मामले में संजीदगी कहीं से भी नहीं दिख रही है. ग्लोबल वॉर्मिंग के चलते मानव जीवन के साथ-साथ इस धरती के तमाम जीव-जंतुओं का अस्तित्व भी ख़तरे में है.
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आइसलैंड से भी एक ऐसी ही दुःखद ख़बर सामने आई है.
ग्लोबल वॉर्मिंग के चलते आइसलैंड के ओकजोकुल (Okjokull) ग्लेशियर ने अपनी पहचान खो दी है. इसके साथ ही ओकजोकुल अपना अस्तित्व खोने वाला दुनिया का पहला ग्लेशियर बन गया है. साल 2014 में इस ग्लेशियर को मृत घोषित कर दिया गया क्योंकि ये पूरी तरह पिघल चुका था.
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CNN की रिपोर्ट के मुताबिक़, बीते शनिवार को एक कार्यक्रम के दौरान आइसलैंड की प्रधानमंत्री कैटरीन जैकोब्स्दोतिर की मौजूदगी में ओकजोकुल से ग्लेशियर का दर्जा वापस ले लिया गया. 700 साल पुराना ये ग्लेशियर आइसलैंड के सबसे प्राचीन ग्लेशियरों में से एक था.
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CNN की रिपोर्ट के मुताबिक़ इस दौरान कैटरीन ने कहा कि ‘ओक’ अपना ग्लेशियर का दर्जा खोने वाला आइसलैंड का पहला ग्लेशियर है. आने वाले 200 वर्ष में हमारे सभी ग्लेशियरों का यही हाल होने की आशंका है. अब समय आ गया है ये देखने का कि आख़िर ये सब इतनी जल्दी जल्दी क्यों हो रहा है हमें इसके उपाय खोजने होंगे.
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इस मौके पर आइसलैंड के पर्यावरण मंत्री गुडमुंडुर इनगी गुडब्रॉन्डसन और संयुक्त राष्ट्र के मानवाधिकार उच्चायुक्त मेरी रॉबिन्सन भी मौजूद थे.
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पिछले 50 सालों से ओकजोकुल ग्लेशियर की तस्वीरें ले रहीं राइस विश्वविद्यालय में एंथ्रोपोलॉजी की एसोसिएट प्रोफ़ेसर सायमीनी हावे ने जुलाई में ही इसकी स्थिति को लेकर आगाह किया था. उन्होंने कहा था कि विश्व में जलवायु परिवर्तन के कारण अपनी पहचान खोने वाला यह पहला ग्लेशियर होगा. अगर ऐसा ही चलता रहा तो साल 2035 तक सभी हिमालयी ग्लेशियर नष्ट हो सकते हैं.
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269 ग्लेशियर वाला देश है आइसलैंड
उत्तरी अटलांटिक में स्थित आइसलैंड एक नॉर्डिक द्वीप देश है. यहां कुल 269 ग्लेशियर हैं जो इस देश का 11 प्रतिशत हिस्सा को घेरते हैं. अब यहां के कई छोटे-बड़े ग्लेशियर पिघल रहे हैं, जिसका कारण दुनिया के दूसरे भागों में पर्यावरण प्रदूषण बढ़ना है.
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दरअसल, ग्लेशियर की स्थिति वैश्विक ताप और जलवायु परिवर्तन के अहम संकेतक हैं. साथ ही ग्लेशियर पिघलने से समुद्र के जल का स्तर बढ़ता है जिससे समुद्र का पारिस्थितिकी तंत्र प्रभावित होता है.