हैदराबाद यूनिवर्सिटी के पीएचडी के छात्र रहे रोहित वेमुला की मौत को एक साल हो गया है. रोहित की मौत के बाद से उनके परिवार की जिंदगी पूरी तरह से बदल गई है. रोहित के बड़े भाई वैज्ञानिक बनना चाहते हैं, लेकिन अपने भाई को इंसाफ दिलाने के चलते उन्होंने अपना ये फैसला कुछ समय के लिए टाल दिया है और गुजर बसर करने के लिए वो अभी ऑटो चलाकर रोजी-रोटी जुटाते हैं

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पुडुचेरी यूनिवर्सिटी से पोस्ट ग्रेजुएट 26 वर्षीय राजा ने कहा कि “कुछ लोगों ने मुझे नौकरी की पेशकश की है, जिनमें दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल भी शामिल हैं. लेकिन अगर मैं नेताओं से नौकरियां लेने लगा तो इसका मतलब होगा कि मैंने प्रशासन के आगे घुटने टेक दिए और इस बात से मेरा भाई नफ़रत करता था. मेरा मिशन अपने भाई को न्याय दिलाना है और दलित आंदोलन को आगे बढ़ाना है. मैं नौकरी के लिए बाद में प्रयास कर सकता हूं.”

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गौरतलब है कि रोहित की आत्महत्या को राजा और दलित आंदोलन के समर्थक लोग एक सांस्थानिक हत्या ठहरा चुके हैं. हालांकि, रोहित ने ख़ुदकुशी के फ़ैसले के लिए किसी शख़्स या संस्था को ज़िम्मेदार नहीं ठहराया था. लेकिन आत्महत्या के पहले और उसके बाद हैदराबाद यूनिवर्सिटी द्वारा रोहित और उसके परिवार की छीछालेदर ने साबित किया कि संस्थान इस मामले में  कितना उदासीन बना हुआ है.

राजा ने बताया, ‘रोहित की मौत एक बड़ा झटका थी, लेकिन रोहित की मौत के बाद हमें देश भर में आयोजित हुई रैलियों और मीटिंग्स में जाना पड़ता था. हालांकि, मुझे ऑटो चलाने में कोई परेशानी नहीं है. मेरे लिए अपनी मां के पास रहकर उनकी मदद करना जरूरी है.’

रोहित की आत्महत्या के पहले अख़लाक की हत्या, उसके बाद गुजरात में दलितों की बेरहमी से हुई पिटाई से भी यही साबित हुआ है कि भारत दलितों और मुसलमानों के लिए बहुत ज्यादा सुरक्षित जगह नहीं है. गौरतलब है कि अख़लाक के मामले की तरह ही रोहित के केस को भी सरकार और यूनिवर्सिटी की असंवेदनशीलता का सामना करना पड़ा था.

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राजा ने अप्लाइड जियोलॉजी में एमएससी किया है और वे वैज्ञानिक बनना चाहते हैं, लेकिन उन्होंने बताया कि मेरे भाई की मौत एक सदमे की तरह थी और मुझे इससे उबरने में समय लगेगा. उन्होंने कहा कि आम आदमी पार्टी के अलावा एक और राजनीतिक पार्टी ने उन्हें मदद करने का आश्वासन दिया था, लेकिन उन्होंने इस ऑफर को भी ठुकरा दिया. साथ ही उन्होंने इस पार्टी का नाम बताने से भी इंकार कर दिया. उन्होंने कहा कि दलित होने से पहले हम भारतीय हैं. सरकार को ये समझना ही होगा. हम बराबरी की लड़ाई लड़ रहे हैं न कि शोहरत, दौलत या ताकत की.

गौरतलब है कि अख़लाक के केस की तरह ही केंद्र सरकार ने रोहित के केस में उसे ही बदनाम करने की कोशिश की थी. केवल हैदराबाद यूनिवर्सिटी ही नहीं, बल्कि केंद्र सरकार के फैसलों से भी यही ज़ाहिर हुआ कि सरकार आत्मविश्लेषण करने की जगह, रोहित को ही बदनाम कर ख़ुदकुशी जैसे मामले की गंभीरता को ही खत्म कर देना चाहती है. शायद यही कारण था कि राज्य सरकार और केंद्र सरकार का पूरा ज़ोर यह साबित करने पर था कि रोहित दलित नहीं था और उसकी मां ने झूठ बोलकर अनुसूचित जाति का प्रमाण पत्र लिया था.

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राजा ने कहा कि ये संघर्ष लंबा है और इसे एक निश्चित समय सीमा में हासिल करना आसान नहीं होगा. फिलहाल हम अंबेडकर स्टूडेंट्स एसोसिएशन को अपना समर्थन प्रदान कर रहे हैं, जो राज्य के 13 जिलों में दलितों के अधिकारों और उनके दायित्वों को मजबूती प्रदान करने का काम करेगी.