दिल्ली के मैक्स अस्पताल में डॉक्टरों की लापरवाही का बेहद चौंकाने वाला मामला सामने आया है. माता-पिता को पॉलिथीन में उनके जुड़वा बच्चे ये कह कर थमा दिए गए कि दोनों मरे हुए पैदा हुए हैं. 6 घंटे बाद, बच्चों को दफ़नाये जाने से कुछ देर पहले ही उनमें से एक ने पैर हिलाना शुरू कर दिया.

घटना शालीमार बाग स्थित मैक्स अस्पताल की है. गुरुवार दोपहर मैक्स अस्पताल में एक महिला को जुड़वा बच्चे, एक लड़का और एक लड़की पैदा हुए थे. डॉक्टरों ने एक बच्चे को मृत बता दिया था. कुछ देर में डॉक्टरों ने दूसरे बच्चे को भी मृत घोषित कर दिया. परिवार वाले जब कार से मधुबन चौक तक पहुंचे, तो अचानक लड़के की सांसे चलने लगी.

बच्चे को तुरंत कश्मीरी गेट स्थित नज़दीकी अस्पताल में भर्ती कराया गया. डॉक्टरों ने बच्चे की हालत स्थिर बताई है. पीड़ित परिवार ने मैक्स अस्पताल जाकर हंगामा किया और पुलिस को सूचना देकर शालीमार बाग थाने में मामला दर्ज कराया.

केन्द्रीय स्वास्थ्य मंत्री जेपी नड्डा ने इस घटना को दुखद बताया है और मुख्यमंत्री अरविन्द केजरीवाल ने ट्वीट कर के इस मामले में दोषियों के ख़िलाफ़ कड़ी कार्रवाई करने का आदेश दिया है.

पीड़ित परिवार ने बताया कि उनसे कहा गया था कि लड़के को इनक्यूबेटर में रखा जायेगा, जिसके लिए तीन दिन तक हर दिन के एक लाख रुपये लगेंगे और उसके बाद हर दिन के पचास हज़ार रुपये लगेंगे. बच्चे को तीन महीने तक इस तरह रखना होगा.

इसके बाद जब परिवार ने बच्चे को किसी छोटे अस्पताल ले जाने की बात की, तो उनसे कह दिया गया कि दूसरा बच्चा भी मर चुका है.

मैक्स अस्पताल ने स्टेटमेंट में कहा है कि इस घटना के लिए ज़िम्मेदार डॉक्टर को छुट्टी पर भेज दिया गया है. बच्चे 22 हफ़्ते प्रीमैच्योर थे और उनमें जान नहीं दिखने के बाद ही उन्हें परिवार को सौंपा गया था. मामले की गहन जांच की जा रही है. बच्चों के माता-पिता से भी लगातार संपर्क रखा जा रहा है और पूरा योगदान दिया जा रहा है.

पिछले महीने ही दिल्ली के एक और बड़े अस्पताल फ़ोर्टिस में डेंगू से सात साल की बच्ची की मौत हुई थी. बच्ची की बॉडी ले जाने देने के लिए अस्पताल ने माता-पिता से 18 लाख रुपये का बिल मंगा, जिसमें 2,700 दस्तानों की कीमत भी शामिल थी. अब सरकार इस मामले की जांच कर रही है.

आज निजी अस्पताल मात्र व्यापार का ज़रिया बन कर रह गए हैं. इस तरह की घटनाएं बड़े अस्पतालों में आम हो गयी हैं. एक साधारण परिवार के लिए इलाज कराना भी एक मुसीबत बन जाता है. मामूली बीमारियों का इलाज कराने में भी साधारण परिवार सिर से पांव तक कर्ज़े में डूब जाते हैं. इसके बावजूद, उन्हें इस तरह की लापरवाही झेलनी पड़ रही है. भारत में स्वास्थ्य सुविधाओं की हालत इतनी लचर है कि इलाज के अभाव में ही कितनी ज़िंदगियां दम तोड़ देती हैं. सरकार को ज़रूरत है कि अब स्वास्थ्य सुविधाओं को दोबारा ग़रीबों के लिए सुलभ बनाये जाने के लिए क़दम उठाये.