पारसी समुदाय, दुनिया का सबसे समृद्ध समुदाय है. हालांकि यह बहुत छोटा है, लेकिन बेहद सफल समुदाय है. इनकी घटती आबादी की वजह से पारसी लोगों के अस्तित्व पर खतरा मंडरा रहा है. इनकी कम संख्या होने के बावजूद भी इन्होंने हमारे देश को बहुत कुछ दिया. आज़ादी हो या फ़िर उद्योग, हर समय देश के लिए खड़े रहे. आज पारसी समुदाय का नया साल है. इसे ‘नवरोज’ भी कहते हैं. इस दिन वे न सिर्फ अपने घरों को सजाते और नए कपड़े पहनते हैं, बल्कि धार्मिक कर्तव्य का भी निर्वाह करते हैं.

नवरोज एक ऐसा पर्व है, जिसका पारसी समुदाय साल भर इंतजार करता है, क्योंकि इस दिन परिवार के सब लोग एकत्र होकर पूरे उत्साह के साथ इस त्योहार को मनाते हैं. पारसी मान्यता के मुताबिक, इस दिन पूरा समुदाय अपने देवता की उपासना करता है. पूजा करने के लिए वे जरथ्रुष्ट की तस्वीर, मोमबत्ती, दर्पण, अगरबत्ती, फल-फूल, चीनी, सिक्के आदि का उपयोग करते हैं. ऐसा वे अपने परिवार के लोगों के सुख और शांति के लिए करते हैं.
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पारसी समुदाय ख़तरे में है

वर्तमान में पूरे देश में पारसी समुदाय की आबादी 62,000 है. 1200 साल पहले इन लोगों को ईरान से धार्मिक अत्याचारों से बचने के लिए भागना पड़ा था, क्योंकि ईरान के शासक और आम लोग अन्य धर्म को मानते थे. यहां आने के बाद वे गुजरात और मुंबई के इलाकों में जा कर बस गए.

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अल्पसंख्यक हैं, मगर बहुसंख्यकों का पेट भरते हैं

हमारे देश को टाटा, बलसारा और गोदरेज ने क्या दिया, यह बताने की जरूरत नहीं है. लेकिन अत्यंत सीधे और रूढ़िवादी होने के कारण वे अपना अस्तित्व बचाए रखने में सफल नहीं हो पा रहे हैं. 

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आज भले ही पारसी समुदाय अपने अस्तित्व को लेकर लड़ रहा है, मगर एक हकीकत यह भी है कि देश में ज्यादातर उद्योग घराने इसी समुदाय के हैं. पारसियों ने इस देश को बहुत कुछ दिया, लेकिन अपने लिए कुछ मांगा नहीं.