साबुन, टूथपेस्ट, घी, तेल, अगरबत्ती, बिस्किट, चाय, मसाले, नमकीन, शैम्पू, क्रीम, दालें, अचार और न जाने क्या-क्या … लगभग हर एक सामग्री बेचने वाला पतंजलि ग्रूप अब भारत में Marijuana को वैध कराने की कोशिश में है. हरिद्वार में स्थित पतंजलि के Research & Development Centre में, 200 वैज्ञानिकों की टीम इसके औषधीय और औद्योगिक गुणों पर अध्ययन में लगी हुई है.
पतंजलि के Chief Executive बालकृष्ण का कहना है, ‘आयुर्वेद में, प्राचीन काल से Cannabis के कुछ हिस्सों को दवाइयों के तौर पर इस्तेमाल किया गया है.
पश्चिमी बाजारों में तो, Cannabis को कपड़े और कुछ प्रकार के तेलों में भी इस्तेमाल किया जा रहा है. इसके हानिकारक पदार्थों को हटा कर, विभिन्न प्रकार के लाभ पर शोध करना ज़रूरी है.’
अमेरिका और कनाडा जैसे देशों में Cannabis पहले से ही क़ानूनी तौर पर मान्य है और वहां की अर्थव्यवस्था में एक बड़ा योगदान भी दे रही है. Marijuana को वैध कराने की कोशिश पिछले कुछ वर्षों से हो रही है. 2015 में पटियाला के संसदीय सदस्य डॉक्टर धर्मवीर गांधी ने इसके लिए एक प्रस्ताव रखा था. फिर 2017 में उनको BJP MP विनोद खन्ना और ओडिशा से एक बीजू जनता दल के MP का समर्थन भी मिला. 2017 में ही महिला और बाल विकास मंत्री, मेनका गांधी ने सुझाव दिया कि औषधीय उद्देश्यों के लिए इसको दवा के रूप में वैध करना भारत में फ़ायदेमंद हो सकता है.
हाल ही में इज़राइल में स्थित एक Marijuana Firm, सीडो की रिपोर्ट के मुताबिक़, दिल्ली और मुंबई दुनिया भर के उन दस शहरों में आते हैं जहां सबसे ज़्यादा Marijuana का प्रयोग होता है. बालकृष्ण ने ये भी बयान दिया कि Marijuana का अपराधीकरण करके, हम लोगों के लिए रोज़गार और एक पूर्ण व्यापारिक अवसर को खो रहे हैं.
अपने अनगिनत विज्ञापनों में विदेशी कंपनियों के ख़िलाफ़ लड़ने वाले पतंजलि ग्रुप के लिए, Marijuana को वैध कराने के पीछे का उद्देश्य, अब देश में रोज़गार बढ़ाना है या अपना व्यापार बढ़ाना, ये तो कहा नहीं जा सकता.