गर्मियां दस्तक दे चुकी हैं. आप में से कई लोग ऐसे होंगे जो चुभती जलती गर्मी से बचने के लिए नए-नए उपाय तलाश रहे होंगे. लेकिन अगर आपका प्लान किसी स्वीमिंग पूल में रिलैक्स करने से जुड़ा है तो, ये खबर पढ़कर आप अपने इस ख़्याल पर शायद दोबारा विचार करना चाहेंगे.

कना़डा की एक यूनिवर्सिटी ने स्वीमिंग पूल्स में यूरिन की मात्रा को खोजने के लिए एक रिसर्च की है. वैज्ञानिकों ने यूरिन में पाए जाए वाले एक कृत्रिम स्वीटनर की मदद से ये पता लगाने में कामयाबी हासिल की है कि आखिर एक औसत ओलंपिक पूल में यूरिन की मात्रा कितनी होती है. रिसर्चर्स ने इस मामले में कनाडा के दो शहरों के 31 स्वीमिंग पूलों से 250 सैंपल इकट्ठे किए.

उन्होंने पाया कि 830,000 लीटर पानी की क्षमता वाले एक औसत स्विमिंग पूल में लगभग 17 गैलन यानि 75 लीटर पानी तो केवल यूरिन ही होता है. ये स्विमिंग पूल एक औसत ओलंपिक पूल के एक तिहाई होते है. मतलब अगर आप किसी ओलंपिक पूल में तैर रहे हैं, तो इसमें 225 लीटर (50 गैलन) तो केवल यूरीन ही होगा.

स्विमिंग करने के बाद अगर आपकी आंखे लाल हो जाती हैं तो समझ लीजिए कि उस पूल में लोगों ने मूत्र विसर्जन किया हुआ है. दरअसल यूरिन में मौजूद नाइट्रोजन, क्लोरीन के साथ मिलकर Chloramine बना देता है और यही Chloramine स्विमिंग करने के बाद आंखों को लाल कर देता है.

कनाडा के डॉ शिंग फैंग के मुताबिक, इससे साबित होता है कि हमें पूल केमिस्ट्री को लेकर एक नए सिरे से सोचने की जरूरत है.

वैज्ञानिकों ने पाया कि Acesulfame Potassium (ACE) नाम का एक स्वीटनर यूरिन में मौजूद होता है. स्वीमिंग पूल और हॉट टबों में इन ACE की मात्रा 30 से लेकर 7110 नैनोग्राम प्रति लीटर थी, जो सामान्य पानी में पाई जाने वाली ACE की मात्रा से 570 गुना ज़्यादा है.

डॉ ली ने कहा कि हम इस रिसर्च की मदद से लोगों को स्वीमिंग हाइजिन के प्रति जागरूक करना चाहते हैं. स्वीमिंग में यूरिन करने का कल्चर खत्म होना चाहिए. हमें दूसरे लोगों के प्रति भी संवेदनशील होना चाहिए, क्योंकि पूल में यूरिन की मौजूदगी से लोगों की आंखें लाल होने से लेकर, सांस लेने में दिक्कत और अस्थमा जैसी बीमारी तक हो सकती है.

एक सर्वे में 19 प्रतिशत लोग मान चुके हैं कि वे कम से कम एक बार तो पूल में हल्के हुए हैं. वहीं ज़्यादातर प्रोफ़ेशनल तैराक भी इसे एक सामान्य प्रक्रिया ही मानते हैं.

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2012 में अमेरिका के दिग्गज तैराक माइकल फेल्प्स ने इस व्यवहार को एकदम सही बताया था. उन्होंने कहा था कि मुझे लगता है कि हर कोई स्वीमिंग पूल में हल्का होता है. पूल में मौजूद क्लोरीन की मौजूदगी उसके असर को काट देती है, तो मुझे नहीं लगता कि स्वीमिंग पूल में मूत्र विसर्जन करना कोई गलत बात है.

फेल्प्स जैसे दिग्गज खिलाड़ी का बयान साबित करता है कि पूल में पेशाब करना दुनियाभर में एक सामान्य व्यवहार की तरह ही देखा जाता है लेकिन वैज्ञानिकों का कहना है कि कम से कम इस रिसर्च के बाद तो लोगों को पूल में हल्का होने से पहले गंभीरता से सोचना शुरु करना चाहिए.

Source: Metro