भ्रष्ट्राचार भरी दुनिया में ईमानदार अफ़सर मिलना, मानों अंधरे में कोई चीज़ दीया लेकर ढूंढ़ने के समान है. मुश्किल से अगर कोई ईमानदार अफ़सर मिल भी जाए, तो संत्री से लेकर मंत्री तक, सब उसकी लाइफ़ ख़राब करने में कोई कसर नहीं छोड़ते.

ताज़ा मामला छत्तीसगढ़ के रायपुर का है. रायपुर सेंट्रल जेल की डिप्टी जेलर, वर्षा डोंगरे को बस्तर का दर्द भरा सच बंया करने की वजह से नौकरी से हाथ धोना पड़ा. 26 अप्रैल को वर्षा ने सुकमा में हुए नक्सली हमले के बाद फ़ेसबुक पोस्ट के ज़रिए, सरकार और पूंजीपतियों पर आदिवासियों के ऊपर ज़ुल्म करने का आरोप लगाया था. पोस्ट के ज़रिए डिप्टी जेलर ने बताया, ’14-16 साल की लड़कियों को काफ़ी टॉर्चर किया जा रहा है. यहां आदिवासी महिलाओं को अपनी सच्चाई का प्रमाण स्तन से दूध निकालकर देना पड़ता है. इतना ही नहीं नबालिग, लड़कियों को निर्वस्त्र करके उनके स्तनों पर करंट लगाया जाता है.’ डोंगरे के मुताबिक, रायपुर पुलिस आदिवासियों के साथ हैवानियत भरा व्यवहार करती है.

वहीं सरकार ने निलबिंत डिप्टी जेलर वर्षा के इस आचरण को कोड ऑफ़ कंडक्ट का उल्लंघन मानते हुए, उनके खिलाफ़ जांच के आदेश दिए हैं.

डिप्टी इंस्पेक्टर जनरल के.के गुप्ता ने वर्षा के ख़िलाफ़ कार्यवाई के दो आधार बताए हैं, ‘पहला गैर-ज़िम्मेदाराना बयान और झूठे तथ्य. दूसरा बिना सूचना के काम पर न आना’.

डोंगरे का कहना है कि ‘इस मामले में उन्हें कोई चार्जशीट नहीं दी गई है और बिना कारण बताए मेरे निलबंन का आदेश पारित कर दिया गया.’

पोस्ट में डोंगरे ने कहा, ‘मैंने ख़ुद बस्तर में आदिवासी के लड़िकयों पर अत्याचार होते हुए देखा है. थाने के बाद नबालिग लड़कियों को नग्न कर, उन्हें बुरी तरह प्रताड़ित किया जाता है. बच्चियों की कलाइयों और स्तनों पर करंट लगाकर उन्हें टॉर्चर किया जाता है. बच्चियों के जिस्म पर बने ये भयानक निशान देखकर मैं अंदर से कांप उठी थी. इन मासूमों पर थर्ड डिग्री टॉर्चर क्यों किया जा रहा है, मुझे समझ नहीं आता. मैं सिर्फ़ इतना चाहती थी कि इन बच्चियों पर हो रहे अत्याचार के खिलाफ़ कड़ी कार्यवाही की जाए और पीड़ित लड़कियों को उपचार के लिए भेजा जाए.’

वहीं देश भर में डोंगरे के निलंबन को लेकर बहस चल रही है. सोशल मीडिया में वर्षा डोंगरे छाई हुई हैं. सुप्रीम कोर्ट के अधिवक्ता प्रशांत भूषण ने भी डोंगरे के पक्ष में आवाज़ उठाई है.