भारत में जब चुनाव लड़ने की बात आती है तो आरोपियों और अपराधियों को एक तरह से फ़्री पास मिल जाता है. गंभीर मामलों के अभियुक्त भी जन प्रतिनिधि बनने की रेस में दौड़ते हैं.
स्थिति और निराशाजनक तब हो जाती है जब ऐसे किसी मामले में सुप्रीम कोर्ट भी हस्तक्षेप नहीं कर पाता है. राजनीतिक दल भी ऐसे व्यक्तियों को चुनावी टिकट देने से बाज नहीं आते.

ऐसे अपराधियों के चुनाव में खड़े होने से दूसरे अच्छे व्यक्तियों के लिए चुनाव में खड़ा होना और चुनाव लड़ना मुश्किल हो जाता है. और अंततः जनता के पास अपने लिए अच्छे जन प्रतिनिधि को चुनने के विकल्प सीमित हो जाते हैं.
आइये जानते हैं उन नेताओं के बारे में जिनपर गंभीर आपराधिक मामले दर्ज़ होने के बाद भी वो चुनाव में खड़े हुए:
1. अनंत सिंह
मोकामा से राजद के टिकट से चुनाव लड़ रहे अंनत सिंह का इतिहास अपराध और हिंसा से भरा हुआ है. बाहुबली से राजनीति में आने वाले अनंत सिंह को उनके इलाके में ‘छोटे सरकार’ के नाम से भी जाना जाता है. लालू प्रसाद यादव की सरकार के समय उनको अपहरण और हत्या मामले में गिरफ़्तार किया गया था.

2. शंभूलाल रैगर
क्या आपको 2017 में राजस्थान में हुई एक लिंचिंग की घटना याद है जिसमें एक प्रवासी कामगार को सरेआम मार-मार के आग लगा दी जाती है? इस हत्या के वीडियो में जो व्यक्ति आग लगाते हुए देखा गया था उसे 2019 का लोकसभा चुनाव लड़ने के लिए टिकट मिला था.
जी हां, शंभूलाल रैगर को उत्तर प्रदेश के रामपुर से चुनाव लड़ने के लिए नवनिर्माण सेना की तरफ से टिकट दिया गया था. उसके खिलाफ़ भारतीय दंड संहिता (IPC) और सूचना प्रौद्योगिकी (IT) अधिनियम की नौ धाराओं के तहत आरोप दर्ज थे और वो जोधपुर सेंट्रल जेल में क़ैद था, जब उसे टिकट दिया गया.

3. के सुरेंद्रन
जब ये ख़बर आई कि 2019 के लोकसभा चुनावों में सुरेंद्रन केरला के सबसे प्रमुख उम्मीदवारों में से एक हैं तो लोगों को विश्वास नहीं हुआ. दरअसल, उनके खिलाफ़ क़रीब 240 आपराधिक मामले दर्ज हैं.

4. अरुण गवली
अगर आपको ऐसा लगता है कि अपराधियों का राजनीतिक दलों के टिकट पर चुनाव लड़ना हाल ही चलन में आया है तो आप ग़लत हैं. आज से एक दशक पहले, 2009 में गैंगस्टर से राजनेता बने अरुण गवली ने जेल से ही चुनाव लड़ा था.

5. पप्पू यादव
बिहार के कुख्यात नेता और मधेपुरा के पूर्व सांसद, पप्पू यादव उर्फ़ राजेश रंजन के बारे में कौन नहीं जानता. वो फ़िलहाल जन अधिकार पार्टी के मुखिया हैं, जिसका गठन उन्होंने 2015 में किया था. वो इस बार बिहार चुनावों में चंद्रशेखर आज़ाद की आज़ाद समाज पार्टी के साथ मिलकर प्रगतिशील लोकतांत्रिक गठबंधन (PDA) फ़्रंट के झंडे तले चुनाव लड़ रहें हैं, जिसमें वो ख़ुद को CM उम्मीदवार के रूप में सामने रख रहे हैं.

6. साध्वी प्रज्ञा
2019 के लोकसभा चुनावों में तब इनकी चर्चा चारों तरफ़ होने लगी जब भाजपा ने प्रज्ञा को मध्य प्रदेश के भोपाल से अपना उम्मीदवार घोषित किया. 2008 में हुए मालेगांव विस्फोट में 6 लोगों की मौत हो गयी थी और 100 से ज़्यादा लोग घायल हुए थे. इस आतंकवादी हमले के तार प्रज्ञा से जुड़े हुए पाए गए थे और उनको इस हमले का मुख्य अभियुक्त बनाया गया था.

ऐसे अपराधियों का चुनावों में जीतना हमारे बारे में क्या बताता है? एक देश और समाज के लिए ये कितना उचित है? आपकी क्या राय है इस पर?