कहानी बिलकुल फ़िल्मी है, इसलिए इसे फ़िल्मी तरीके से सुनाते हैं.

कहानी के Center में एक पुलिस वाला है. ऐसा हिम्मतवाला, जिसके आगे अंडरवर्ल्ड के अच्छे-अच्छों ने घुटने टेक दिए. जो उसकी बन्दूक के निशाने से भागने की कोशिश करता, उसकी मौत पक्की. वो था तो टीचर का बेटा, लेकिन किस्मत में उसकी पुलिस वाला बनना लिखना था. पुलिस वाला भी कौन सा? 1983 बैच का पुलिस वाला. इस बैच को याद किया जाता है मुंबई से अंडरवर्ल्ड का सफ़ाया करने में. उसने एक-एक कर के 113 एनकाउंटर कर डाले और उसका नाम मुंबई के सबसे बड़े एनकाउंटर स्पेशलिस्ट में गिना जाने लगा. लेकिन किस्मत ने पलटी तब मारी, जब उसका नाम छोटा राजन के ख़ास लखन भैय्या के Fake एनकाउंटर में आया और उसे सर्विस से हटा दिया गया.

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9 साल बाद फिर से उसकी वापसी हुई है. वो फिर से वर्दी पहनेगा और फिर से मुंबई का सबसे बड़ा एनकाउंटर वाला बन जाएगा.

ये सच्ची कहानी थी मुंबई क्राइम ब्रांच से 9 साल के लिए Suspend किये गए, इंस्पेक्टर प्रदीप शर्मा की. आज 9 साल बाद प्रदीप शर्मा की उनकी वर्दी वापस मिल रही है और लखन भैय्या के फ़र्ज़ी एनकाउंटर में आया उनका नाम हट गया है.

Hindustan Times

प्रदीप शर्मा की सबसे पहली पोस्टिंग मुंबई के माहिम पुलिस थाने में हुई थी. उनके काम को देखते हुए वहीं से उन्हें स्पेशल ब्रांच के लिए ट्रांसफ़र किया गया. दुनिया अभी भी शर्मा के पहले एनकाउंटर को याद करती है. उनकी बन्दूक से निकली पहली गोली लगी थी हिटमैन सुभाष मकड़वाला को. बात 1993 की है, जब शर्मा और उनके साथ सब-इंस्पेक्टर विजय सालसकर को इंस्पेक्टर शंकर काम्बले ने मकड़वाला को Neutralize करने के लिए भेजा. मकड़वाला ने भागने की कोशिश की लेकिन वो शर्मा की 9 mm की Carbine से बच नहीं पाया.

3 साल में ही एनकाउंटर स्पेशलिस्ट का नाम कमा चुके शर्मा की वर्दी पर पहला सवालिया निशान 1996 में लगा, जब उनका नाम अंडरवर्ल्ड से जुड़ा और उसी साल उन्हें चन्दन चौकी भेज दिया गया, उसके बाद भी 2002 के घाटकोपर ब्लास्ट में उनका नाम आया. 2007 में उन्हें धारावी पुलिस स्टेशन भेज दिया गया और उसके बाद फ़ेक एनकाउंटर के केस में सेवा से निष्काषित.

लेकिन 9 साल बाद प्रदीप शर्मा की वर्दी से कुछ दाग धुल गए हैं और फ़ोर्स में उनकी फिर से वापसी हो रही है. 55 साल की उम्र में इस एनकाउंटर स्पेशलिस्ट की ये दूसरी शुरुआत होगी.