अनोखे तरीके से प्रदर्शन करते हुए कुछ लोगों ने ऑक्सीजन सिलेंडर और पाइप के ज़रिये यमुना में ऑक्सीजन डाली. दरअसल, इस तरह वो प्रशासन का ध्यान यमुना की बिगड़ती हालत की ओर आकर्षित करना चाह रहे थे.

शहर के नालों का गंदा पानी और कचरा यमुना में बहाये जाने के कारण, यमुना का जल दूषित हो चुका है. न जनप्रतिनिधियों को इसकी चिंता है और न प्रशासन को. आगरा जल त्रासदी दिवस पर ‘रिवर कनेक्ट अभियान’ के तहत बीते रविवार शाम ये प्रदर्शन किया गया था.

एक्टिविस्ट श्रवण कुमार ने बताया कि यमुना में ऑक्सीजन का स्तर शून्य हो चुका है, जिससे जलीय जीवन ख़त्म हो रहा है और जीव मर रहे हैं. इंसानों के पीने के लिए भी ये पानी अब ठीक नहीं है. इसमें बक्टेरिया तक जीवित नहीं रह सकते.

यमुना इतनी सूख गयी है कि इससे ताजमहल को भी ख़तरा है. एक्सपर्ट्स की मानें, तो ताजमहल की नींव नदी के कारण गीली रहेगी, तभी ताज महल सुरक्षित रह पायेगा. दिल्ली में वो दिन भी आया था, जब 21 मई, 1993 यमुना का दूषित पानी पीने के कारण 21 लोगों की मौत हो गयी थी.

दिल्ली ने भी यमुना को ‘रिवर’ से ‘सीवर’ बनाने में कोई कसर नहीं छोड़ी है, हरियाणा के कारखानों का गंदा पानी भी अधिक मात्रा में यमुना में छोड़ा जाता है. फरवरी, 2014 के अंतिम हफ्ते में शरद यादव की अगुआई वाली संसदीय समिति ने भी कहा था कि यमुना सफ़ाई के नाम पर खर्च किये गए 6500 करोड़ रुपए बेकार हो गए हैं, क्योंकि नदी पहले से भी ज़्यादा गंदी हो चुकी है.

एक सपना राष्ट्रमंडल खेलों के पहले दिखाया गया था कि अक्टूबर, 2010 तक लंदन की थेम्स नदी की ही तरह दिल्ली में वज़ीराबाद से लेकर ओखला तक शानदार लैंडस्केप, बगीचे होंगे, नीला जल कल-कल कर बहता होगा, पक्षियों और मछलियों की रिहाइश होगी. लेकिन राष्ट्रमंडल खेल तो बदबू मारती, कचरे व सीवर के पानी से लबरेज यमुना के तट पर ही हुए.

दिल्ली में यमुना को साफ़-सुथरा बनाने की कागज़ी कवायद चालीस सालों से चल रही है. सन अस्सी में नौ सौ करोड़ की एक योजना बनाई गई थी.

अगर यमुना को बचाना है तो, सरकारी पैसों का ईमानदारी से इस्तेमाल किया जाना ज़रूरी है. यह हमेशा याद रखना चाहिए कि मानव-सभ्यता का अस्तित्व नदियों से ही है.