ये कहानी है जयप्रकाश चौधरी की, जिसे लोग अब संतु के नाम से जानते हैं. जब संतु 17 साल का था, तब 1994 में वो पैसा कमाने के लिए दिल्ली आ गया था. जब उसकी उम्र के बच्चे पढ़ रहे थे और कॉलेज जा रहे थे, तब वो दिन रात मेहनत कर के अपने माता-पिता, पांच बहनों और चार भाइयों के लिए कमाई कर रहा था.

तक़रीबन 2 दशक पहले दिल्ली में आया जो लड़का कभी कूड़ा उठाने का काम करता था, वो आज 160 लोगों को रोज़गार दे रहा है. कभी दिन के 150 रुपये कमाने वाला संतु अब प्रति माह 11 लाख रुपये का कचरा बेचता है.

23 साल पहले जब वो दिल्ली आया था, तो उसे फलों की दुकान पर काम मिला था, जहां उसे मात्र 20 रुपये दिए जाते थे. संतु सभी कूड़ा उठाने वालों के लिए एक मिसाल बन गया है. वो कचरा बेचकर ही आज इस मुक़ाम पर पहुंचा है.

उसने रात के समय कंस्ट्रक्शन साइटों पर लेबर के रूप में भी काम किया और 3 महीने में 6 हज़ार रुपये कमाए. एक समय ऐसा भी आया, जब कम कमाई के चलते वो घर लौट गया, लेकिन उसके हौसले अभी थमें नहीं थे. जल्द ही लौट कर उसने नयी पारी की शुरुआत की.

वो कचरे में से निकलने वाली उन चीज़ों को अलग करता था, जिन्हें बेचा जा सकता था. 1996 में राजा बाज़ार झुग्गी में एक सड़क के किनारे दुकान खोल कर उसने शुरुआत की थी. यहां वो कचरा बीनने वालों से सूखा कचरा खरीदता था और फिर उसे बेचता था. शुरुआत में ये उनके लिए आसान नहीं था. मगर साल 1999 में उन्होंने कूड़ा उठाने वालों का एक संगठन बनाया और वही उनकी ज़िन्दगी का टर्निंग पॉइंट साबित हुआ. उन्होंने कचरा बीनने वालों का एक संगठन तैयार किया, जिसे “सफ़ाई सेना” का नाम दिया गया.

उन्होंने अपने संगठन को एक एनजीओ ‘चिंतन एन्वॉयरमेंटल रिसर्च और एक्शन ग्रुप’ के साथ जोड़कर कूड़ा उठाने वालों के साथ होने वाले भेदभाव से लड़ना शुरू किया. साल 2000 में वह राजा बाज़ार से कोटला शिफ़्ट हुए, मगर उनके वेयरहाउस को प्रशासन द्वारा तोड़ दिया गया. लेकिन चौधरी ने हिम्मत नहीं हारी और दूसरी जगह काम करना शुरू कर दिया.

2012 में उन्होंने गाज़ियाबाद के सिकंदरपुर में अपना सेंटर स्थापित किया, जो आवासीय इलाके से दूर है. बाद में उन्होंने नई दिल्ली रेलवे स्टेशन के पास एक और केंद्र स्थापित किया, जहां 160 कर्मचारी काम करते हैं.

संतु का सन्देश:

अगर उत्साह और दृढ़ निश्चय हो, तो कोई भी व्यक्ति अपनी किस्मत बदल सकता है. उतार-चढ़ाव ज़िन्दगी का हिस्सा हैं, इनके सामने हार नहीं माननी चाहिए और निरंतर आगे बढ़ते रहना चाहिए.