अक्सर देखने में आता है कि बच्चे पढ़ाई से दूर भागते हैं और कई अभिभावक, लंबे अर्से के बाद अपने बच्चों को पढ़ाई में दिलचस्पी दिला पाते हैं. लेकिन राजस्थान में एक लड़की की कहानी ठीक इसके उलट है.

19 साल की नीतू के पिता बनवारी लाल शर्मा ने आर्थिक तंगी के चलते नीतू की पढ़ाई को लेकर हाथ खड़े कर लिए थे. नीतू पढ़ लिखकर एक शिक्षिका बनना चाहती थी इसलिए उसने अपने पिता का बोझ कम करने के लिए दूध बेचना शुरू कर दिया. नीतू की एक बड़ी बहन भी है जिसका नाम सुषमा है. दूध बेचने के काम में सुषमा ने भी नीतू का साथ दिया जो कि पैसे की कमी के कारण पहले ही स्कूल जाना छोड़ चुकी है.

नीतू रोज सुबह 4 बजे उठती है और फिर भंडोर खुर्द गांव के घरों से दूध इकट्ठा कर उसे भरतपुर सिटी में घर-घर बेचने के लिए जाती है. गांव से भरतपुर सिटी का सफ़र नीतू अपनी बहन सुषमा के साथ मोटरसाइकल पर तय करती है.

सुषमा बाइक के पीछे बैठकर दूध के डिब्बों को संभालती है. दूध बेचने के बाद नीतू अपने एक रिश्तेदार के यहां मोटरसाइकल खड़ी कर, अपने कपड़े बदल कर राजस्थान स्टेट सर्टिफ़िकेट कोर्स से इंफ़ोर्मेशन टेक्नोलॉजी की दो घंटे की क्लास के लिए चली जाती है. नीतू की क्लास 10 बजे से 12 तक चलती है. वहीं सुषमा अपने रिश्तेदारों के यहां रुककर नीतू के क्लास से वापस आने का इंतजार करती है और फिर नीतू के वापस आने के बाद दोनों घर लौट जाती हैं.

नीतू और सुषमा करीब एक बजे घर पहुंचती हैं और फिर घर पर थोड़ा देर काम और आराम करने के बाद दोनों शाम को 5 बजे दूध बेचने के लिए निकल जाती हैं. पहले नीतू अपने कंधों पर दूध का डिब्बा रखकर 5 किलोमीटर का सफ़र तय कर दूध बेचने के लिए जाती थी.

नीतू रोज़ दोनों समय 90 लीटर दूध बेचती है जिससे उसके सभी खर्चों के बाद 12 हजार रुपए बन जाते हैं. सुषमा ने गांव में ही एक बरतन की दुकान खोल ली है और वहीं नीतू अब बीए द्वितीय वर्ष की पढ़ाई कर रही है. सुषमा का मानना है कि ऐसा कोई भी काम नहीं है, जिसे लड़कियां नहीं कर सकती. नीतू और सुषमा के जज़्बे को सलाम.