राजस्थान के झुंझनू ज़िले का एक कोर्टरूम.
कोर्टरूम में रेप केस की कार्रवाई चल रही थी. एक 22 वर्षीय युवक पर 3 साल की बच्ची के बलात्कार का आरोप था. जज नीरजा दधीच ने फ़ैसला सुनाते हुए आरोपी को सज़ा-ए-मौत दी.
The Criminal Law Amendment Act, 2018 के अनुसार, 12 साल से कम उम्र की लड़कियों का यौन शोषण करने पर सज़ा-ए-मौत दी जा सकती है. नीरजा ने अपराध के 29 दिनों में सज़ा सुना दी. आरोपी विनोद ने बच्ची का रेप उसके ननिहाल में किया.
सज़ा सुनाते हुए जज नीरजा ने कहा-
‘जिस मासूम को देख के मन में प्यार उमड़ आता है,
देखा उसी को मन में कुछ कि हैवान उतर के आता है’
कोर्टरूम में मौजूद लोग चुपचाप जज साहिबा की कविता सुन रहे थे. नीरजा की कविता ने उन सबकी कड़ी आलोचना की, जो कपड़ों को रेप की वजह मानते हैं.
उनकी पूरी कविता ये थी:
”वो मासूम नाज़ुक बच्ची, एक आंगन की कली थी,
वो मां-बाप की आंखों का तारा थी, अरमानों से पली थी.
जिसकी मासूम अदाओं से मां-बाप का दिन बन जाता था,
जिसकी एक मुस्कान से आगे पत्थर भी मोम बन जाता था.
वो मासूम बच्ची ठीक से बोल नहीं पाती थी,
दिखा के जिसकी मासूमियत उदासी भी मुस्कान बन जाती थी.
जिसने जीवन के केवल तीन बसंत देखे थे, उस पर ये अन्याय हुआ,
ये कैसे विधि की लेखी थी? एक 3 साल की बेटी पर ये कैसा अत्याचार हुआ?
एक बच्ची को दरिंदों से बचा न सका, ये कैसे मुल्क़ इतना लाचार हुआ?
उस बच्ची पर कितना ज़ुल्म हुआ, वो कितना रोई होगी मेरा ही कलेजा फट जाता है तो मां कैसे सोई होगी?
जिस मासूम को देख के मन में प्यार उमड़ आता है,
देखा उसी को मन में कुछ की हैवान उतर के आता है
कपड़ों के कारण होते रेप जो कहे, उन्हें बतलाऊं मैं,
आख़िर 3 साल की बच्ची को साड़ी कैसे पहनाऊं मैं?
गर अब भी ना सुधरे तो एक दिन ऐसा आएगा,
इस देश को बेटी देने से भगवान भी घबराएगा”