हमारे स्कूल की किताबों में कई जगह पर जाने-अनजाने में ऐसी भाषा का इस्तेमाल किया गया है, जो वर्णभेदी और महिला विरोधी है. महाराष्ट्र बोर्ड की एक किताब में कुरूपता को दहेज का कारण बताया गया है. कुरूपता को दिखाने के लिए एक ख़ास रंग पर ज़ोर दिया गया है. वहीं CBSE द्वारा प्रमाणित कई स्कूलों में पढ़ाई जाने वाली एक किताब में महिलाओं के 36-24-36 फ़िगर को बेस्ट बताया गया है.

हालिया मामला राजस्थान बोर्ड में पढ़ाई जाने वाली किताब ‘समाजपयोगी योजनाएं’ की है. किताब में एक अच्छे उद्यमी के लक्षण बताये गए हैं. इसमें साफ़-साफ़ लिखा है कि एक प्रभावी उद्यमी बनने के लिए सुंदर रंग, अच्छी हाइट होना आवश्यक है. इसका दूसरा मतलब ये निकलता है कि सभी रंग या ऊंचाई के लोगों में सफ़ल उद्यमी बनने के लक्षण नहीं होते.

इस तरह की वर्णभेदी बातें अगर हम बच्चों के स्कूल में पढ़ाएंगे तो निश्चय ही उनका मानसिक विकास रंगों के पूर्वाग्रह के साथ होगा.