लखनऊ में सुबह साढ़े दस बजे, जब नाका हिंडोला मार्केट की ज़्यादातर दुकानें खुली नहीं होतीं, एक आदमी आधे खुले शटर में झांक कर कहता है, ‘पांच लोकल फ़िल्म चाहियें अच्छी वाली, शाम को आऊंगा’.

यहां जिस लोकल फ़िल्म की बात हो रही है, वो कुछ और नहीं, रेप वीडियो है. आजकल ये इस मार्केट की सबसे ज़्यादा बिकने वाली चीज़ बन चुके हैं. ये रेप वीडियो ब्लैंक कवर में आते हैं और बस ख़ास ग्राहकों को बेचे जाते हैं. इन्हें पेनड्राइव में भी ग्राहकों को सौंपा जाता है.

अब रेप की वीडियो रिकॉर्डिंग केवल पीड़िता को ब्लैकमेल करने के लिए नहीं, बल्कि बेचने के लिए भी की जाती है.

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पुलिस की नाक के नीचे ये बिज़नेस चल रहा है. पुलिस स्टेशन इस मार्केट से मात्र 500 मीटर दूर है. सूत्रों का कहना है कि इस काम को चलने देने के लिए पुलिस को भी बड़ी रक़म दी जाती है.

एक व्यक्ति ने बताया कि अब पायरेटेड फ़िल्मों का बिज़नेस ठंडा पड़ चुका है और रेप वीडियोज़ का बिज़नेस चल रहा है. 10-30 मिनट के वीडियो के लिए लोग 300-500 रुपये तक देते हैं.

एजेंट इन वीडियोज़ को सप्लाई करते हैं. इसके लिए वो 2,000 से 5,000 रुपये देते हैं. रेपिस्ट के चेहरे को ब्लर कर दिया जाता है, पीड़िता के नहीं. ऐसे वीडियो महंगे बिकते हैं, जिनमें पीड़िता की चीखें सुनाई दे रही हों. हर दिन ऐसे 100 से 200 वीडियो एक दुकान पर बेचे जाते हैं.

इनकी डिमांड अब इतनी बढ़ चुकी है कि आस-पास के राज्यों से भी लोग इन्हें ख़रीदने आने लगे हैं. मध्य प्रदेश और बिहार से इनके बल्क ऑर्डर आते हैं. इन्हें बेचने वाले बताते हैं कि उनके ग्राहकों में ज़्यादातर स्टूडेंट्स होते हैं.

एक सीनियर पुलिस अधिकारी ने बताया कि रेप के 50% मामलों में रेप को रिकॉर्ड किये जाने की बात सामने आती है, लेकिन पुलिस आईटी एक्ट के तहत मामला दर्ज नहीं करती.