Republic Day 2022: भारत अपना 73 गणतंत्र दिवस (Republic Day 2022) मना रहा है. 26 जनवरी 1950 को इसी दिन हमारे देश का संविधान लागू हुआ था. हालांकि, संविधान सभा ने इसे 26 नवंबर 1949 को ही स्वीकार कर लिया था. संविधान के स्वीकृत होने के बावजूद उसे लागू न करने के पीछे वजह 26 जनवरी की ख़ास तारीख़ थी. क्योंकि 1930 में इसी दिन पूर्ण स्वराज की मांग के साथ तिरंगा फहराया गया था.  

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बता दें, संविधान लिखने की शुरुआत 9 दिसंबर 1946 को हो गई थी. मगर इसे पूरा होने में  2 वर्ष, 11 माह, 18 दिन का समय लग गया गया था. इसके पीछे वजह ये है कि भारतीय संविधान दुनिया का सबसे लंबा लिखित संविधान है. साथ ही, दुनियाभर के देशों के संविधान को स्टडी करने के बाद इसे बनाया गया. तमाम संशोधन भी उस दौरान किए गए. 

मगर हम आज (Republic Day 2022) बात संविधान के बनने या उसकी तारीख़ पर नहीं कर रहे. हम बात आज ड्राफ्टिंग कमेटी के अध्यक्ष डॉ. भीमराव अंबेडकर (Dr. Bhim Rao Ambedkar) की उन 3 चेतावनियों की करने जा रहे हैं, जो उन्होंने संविधान सभा के अपने अंतिम भाषण यानि 25 नवंबर 1949 को भावी पीढ़ी के लिए दी थीं. 

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दरअसल, डॉ. अंबेडकर का कहना था कि संविधान चाहे जितना अच्छा हो, मगर वो बुरा साबित हो सकता है, अगर उसे फ़ॉलो करने वाले बुरे लोग हों. ऐसे में देश दोबारा गुलामी और अराजकता की ओर न बढ़ जाए, इसलिए उन्होंने संविधान सभा के अपने अंतिम भाषण में भविष्य की पीढ़ी के लिए 3 संदेश दिए. उनके इस भाषण को ‘ग्रामर ऑफ़ एनार्की’ के नाम से जाना जाता है. 

Republic Day 2022-

1. छोड़ना पड़ेगा ख़ूनी क्रांति का रास्ता. 

जब हम ग़ुलाम थे, तब देश में अपनी मांगों को लेकर क्रांति गतिविधियां भी हुईं और तमाम आंदोलन भी. मगर संविधान बनने के बाद अंबेडकर इन तरीक़ों के ख़िलाफ़ थे. उनका कहना था कि ‘हमें अपने सामाजिक और आर्थिक लक्ष्यों को हासिल करने के लिए संवैधानिक तरीक़ों का इस्तेमाल करना चाहिए. जिसका मतलब है कि हमें क्रांति का ख़ूनी रास्ता छोड़ना होगा. हमें सविनय अवज्ञा आंदोलन, असहयोग और सत्याग्रह के तरीक़े भी छोड़ने होंगे.’

दरअसल, उनका कहना था कि ‘जब हमारे पास अपने अधिकारों को हासिल करने के लिए कोई रास्ता न हो, तब तो अंसैवाधानिक तरीक़े अपनाए जा सकते हैं. मगर जब संवैधानिक तरीक़े मौजूद हों, तो फिर ऐसे तरीक़ों का कोई औचित्य नहीं है.’ उनका कहना था कि ‘ये तरीके ‘ग्रामर ऑफ़ एनार्की’ के अलावा और कुछ नही हैं. इन्हें जितनी जल्दी छोड़ा जाए, उतना ही बेहतर है.’ 

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2. राजनीति में भक्ति या नायक की पूजा ख़तरनाक है.

डॉ. अंबेडकर का कहना था कि देश के लिए जीवन भर सेवा करने वाले महापुरुषों के प्रति कृतज्ञ होने में कुछ भी ग़लत नहीं है. लेकिन कृतज्ञता की एक सीमा होती है. ‘आयरिश राष्ट्रवादी नेता डेनियल ओ’कोनेल ने एक बार कहा था- कोई भी पुरुष अपने सम्मान की क़ीमत पर किसी का आभारी नहीं हो सकता. कोई महिला अपनी अस्मिता की क़ीमत पर किसी की आभारी नहीं हो सकती. कोई राष्ट्र अपनी स्वतंत्रता की क़ीमत पर कृतज्ञ नहीं हो सकता.’ 

दरअसल, उनका कहना था कि भारत में भक्ति या ‘नायकों की पूजा’ का अपना महत्व है. राजनीति में भी यहां इसकी अतुलनीय भूमिका है. मगर याद रखिए, ‘हो सकता है कि धर्म में भक्ति आत्मा के मुक्ति का मार्ग हो सकती है. लेकिन राजनीति में भक्ति या नायक की पूजा, पतन और अंततः तानाशाही के लिए मार्ग सुनिश्चित करती है,’

3. सामाजिक लोकतंत्र ज़्यादा ज़रूरी है.

डॉ. अंबेडकर ने कहा था ‘तीसरी चीज़ जो हमें करनी चाहिए वो है केवल राजनीतिक लोकतंत्र से संतुष्ट नहीं होना. राजनीतिक लोकतंत्र तब तक नहीं टिक सकता, जब तक कि उसके आधार पर सामाजिक लोकतंत्र न हो. सामाजिक लोकतंत्र का क्या अर्थ है? इसका अर्थ एक ऐसी जीवन-पद्धति से है जो स्वतंत्रता, समानता और बंधुत्व को जीवन के सिद्धांतों के रूप में स्वीकार करती है.’

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उनका कहना था कि स्वतंत्रता, समानता और बंधुत्व को एक-दूसरे से अलग करते नहीं देखा जा सकता है. ‘स्वतंत्रता को समानता से अलग नहीं किया जा सकता. समानता को स्वतंत्रता से अलग नहीं किया जा सकता. इसी तरह स्वतंत्रता और समानता को बंधुत्व से भी अलग नहीं किया जा सकता.’

डॉ. अंबेडकर का कहना था कि हमें इस तथ्य को स्वीकारना होगा कि भारतीय समाज में दो चीजों का पूर्ण अभाव है. इन्हीं में से एक है समानता. भारतीय समाज में असमानता है. एक समाज ऐसा है, जिसके पास ढेर सारा धन है. वहीं, दूसरा घोर ग़रीबी का शिकार है. 

हमारे सामज में अंतर्विरोध मौजूद है. संविधान लागू होने के बाद हमारे पास राजनीतिक समानता तो होगी, जिसमें हर शख़्स के पास एक वोट देने का अधिकार होगा. मगर सामाजिक और आर्थिक जीवन में हमारे पास असमानता भी होगी. मगर हम इन अंतर्विरोधों को लेकर कब तक आगे बढ़ सकते हैं. अगर इन्हें जल्द दूर न किया गया, तो पीड़ित लोग राजनीतिक लोकतंत्र के इस ढांचे को ही ध्वस्त कर देंगे. 

यक़ीनन बाबा साहेब ने जो चेताविनियां या यू कहें कि भावी पीढ़ी को सचेत करने के लिए जो बाते कहीं, वो आज भी प्रासंगिक हैं. आज़ादी से लेकर अब तक इस दिशा में बहुत से प्रयास भी हुए. हम सफ़ल भी हुए है और कुछ निराशाएं भी हाथ लगीं. मगर लोकतंत्र कोई एक बार स्थापित करके भूल जाने वाली चीज़ तो नहीं है. ये तो प्रक्रिया है, जो हमेशा चलती रहेगी. ग़लतियों को स्वीकारना और सुधारना ही हमें एक मज़बूत राष्ट्र के तौर पर स्थापित कर सकता है. (Republic Day 2022)