जहां इस दुर्भाग्यपूर्ण घटना को हम एक ग़ुस्साये नागरिक और साथी भारतीय की तरह देख रहे हैं, वहीं दूसरी ओर भारतीय सेना के अधिकारी और वीर जवानों का नज़रिया हमसे अलग हो सकता है. ऐसे में भारतीय सेना के एक रिटायर्ड अधिकारी मेजर डी पी सिंह, जिन्होंने कारगिल युद्ध में अपना एक पैर गंवा दिया था, उन्होंने फ़ेसबुक पर अपनी भावनाएं व्यक्त करीं हैं. उसके कुछ अंश:
हम आपके साथ खड़े हैं, शहीदों और उनके परिवारों के साथ भी. निश्चित रूप से हमें इसका बदला लेना चाहिए. ये सब बातें सिर्फ़ कुछ दिनों की हैं और फिर सब अपनी-होनी ज़िंदगी में व्यस्त हो जायेंगे. चाहे वो राजनितिक पार्टियां हों, मीडिया वाले या आम जनता. किसी अपने को खो देना का दर्द, कोई नहीं समझ सकता.एक जवान तिरंगा लिए ख़ुशी-ख़ुशी अपनी जान देने के लिए हमेशा तैयार रहेगा लेकिन आख़िर कब तक? सबसे बड़ा सवाल है ये है कि क्या हम ऐसी कोशिशें कर रहे हैं, जिससे सिस्टम में सुधार आये?आज सुबह मैं एक न्यूज़ चैनल पर था. शोर-शराबे के बीच मैंने कुछ लॉजिकल बातें करने की कोशिश करी. जिस पर एंकर ने कहा, ‘लगता है आपने पुलवामा हादसे की तस्वीरें नहीं देखीं हैं वरना आप भी इस बात से सहमत होते कि इसका जवाब सिर्फ़ बदला लेना है’. मैं इस बात से हैरान नहीं हुआ. शायद वो एंकर ये भी नहीं जानती कि मैं एक जंग में लड़ते हुए अपना पैर खो चुका हूं. बल्कि मेरा परिचय करते समय इस बात से भी वो अवगत नहीं थी कि मैं मेजर रैंक का हूं. मैं इन सब चीज़ों के ऊपर उठ चूका हूं.
मैंने जवाब दिया कि हमें इस बात पर ध्यान देना चाहिए कि कश्मीरी युवाओं को शहीद लांस नायक नज़ीर वानी जैसे लोगों से प्रेरणा मिले, जो पहले तो एक आतंकवादी था लेकिन फिर एक जवान बना और अपनी वीरता के लिए उसे सेना का डबल मेडल और अशोक चक्र मिला.जब तक हम नयी युवा पीड़ी में एक सकारात्मक सोच को जन्म नहीं देते, तब तक ये सब यूं ही चलता रहेगा. हमले होंगे, जानें जाएंगी, बदला लिया जाएगा, फिर वही सब कुछ.यही TV एंकर होते हैं जो अपने शब्द ज़बरदस्ती आपसे बुलवाते हैं. ये चिलायेंगे, शोर मचाएंगे और बिना किसी लॉजिक के आपको अपनी बातों से सहमत होने पर मजबूर कर देंगे.
इसके बाद आप अदलातों में इंसाफ़ और मुआवजे के लिए चक्कर लगाते रहिए. हम चाहते हैं कि सैनिक मर जाएं लेकिन उसकी विधवा को बकाए और पेंशन के लिए के लिए दर-दर भटकना पड़ता है. कुछ लोगों को तो प्रमाण देना पड़ता है कि उनका पति शहीद हुआ था. उन्हें कहा जाता है कि शव नहीं मिला है और आप शव लाएं.
ऐसी एक नहीं, कई घटनाएं हैं. आप जवानों की शहादत और उनकी जान का मज़ाक़ न उड़ाएं, तो अच्छा होगा. अपनी भावनाओं के दम पर अपने व्यापार चलाना बंद करिये. भारतीय सेना और CRPF जानती है कब क्या करना चाहिए. वो पहले भी अच्छी तरह से जवाब दे चुके हैं और आगे भी सही समय आने पर उचित क़दम उठाएंगे. आपको हमें बताने की ज़रुरत नहीं कि हमें क्या करना चाहिए.
लेकिन हां, आपको बोलने की आज़ादी आपसे कोई छीन भी नहीं सकता!