इलाहाबाद हाई कोर्ट ने बीते सोमवार को अपने एक पुराने फ़ैसले को ख़ारिज करते हुए नया फ़ैसला सुनाया. Live Law की रिपोर्ट के मुताबिक़, जस्टिस विवेक अग्रवाल और जस्टिस पंकज नक्वी ने कहा कि सितंबर में और 2014 में दिए गए फ़ैसले सही फ़ैसले नहीं हैं. 

जस्टिस अग्रवाल और जस्टिस नक्वी ने कहा कि 2 व्यस्कों के साथ रहने के निर्णय पर राज्य या अन्य लोग अपनी राय नहीं दे सकते. 

Dhaka Tribune
हम यह समझने में विफल हैं कि यदि क़ानून दो व्यक्तियों को एक साथ शांति से रहने की अनुमति देता है, भले ही वो Same Sex के हों, ऐसे में किसी व्यक्ति को, परिवार को या यहां तक ​​कि राज्य को भी दो वयस्क व्यक्तियों के संबंधों पर आपत्ति नहीं होनी चाहिए. 

-जस्टिस नक्वी और जस्टिस अग्रवाल

The Indian Express

इलाहाबाद हाई कोर्ट के ही दो फ़ैसलों का उल्लेख करते हुए न्यायधीशों की पीठ ने कहा,

‘इन फ़ैसलों ने जीवन या अपनी मर्ज़ी से दो वयस्कों की एक साथ ज़िन्दगी बिताने के इरादे पर बात नहीं की. नूर जहां और प्रियांशी पर दिए गए फ़ैसले अच्छे क़ानून का निर्धारण नहीं हैं.’ 

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इलाहाबाद हाई कोर्ट ने ये भी कहा कि दो वयस्कों को साथ रहने के निर्णय में कोर्ट की दख़लअंदाज़ी, संविधान के अनुच्छेद 21 का उल्लंघन है.  

बीते 29 सितंबर को जस्टिस महेश त्रिपाठी ने एक शादीशुदा जोड़े की पुलिस प्रोटेक्शन की याचिका ख़ारिज कर दी थी. जस्टिस त्रिपाठी ने कहा कि महिला जन्म से मुस्लिम थी और सिर्फ़ शादी करने के लिए उसने हिन्दू धर्म अपनाया था. त्रिपाठी ने 2014 के नूर जहां बेग़म केस का उल्लेख करते हुए याचिका ख़ारिज की थी. नूर जहां बेग़म केस में महिला ने मुस्लिम धर्म अपनाने के बाद निकाह किया था.  

जस्टिस त्रिपाठी का कहना था कि क्या एक हिन्दू महिला का जिसे इस्लाम के बारे में कुछ नहीं पता, सिर्फ़ शादी करने के लिए धर्म बदल लेना सही है?