कोरोना वायरस के चलते 23 मार्च की दोपहर क़रीब 3 बजे, दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने दिल्ली में लॉकडाउन की घोषणा की थी. इसके बाद सदर बाज़ार, आज़ाद मार्केट और भागीरथ पैलेस के लगभग 50 पोर्टरों (रिक्शा चालकों) ने बिहार स्थित अपने गांव वापस जाने का फ़ैसला किया.

इन रिक्शा चालकों में से एक बिहार के मधुबनी ज़िले के उमगांव के रहने वाले 38 वर्षीय मोहम्मद समीरुल भी थे. समीरुल 8 दिन तक भूखे-प्यासे दिल्ली से साइकिल (समान ढोने वाला रिक्शा) चलाकर 1,180 किमी दूर अपने गांव पहुंचे.

The Indian Express से फ़ोन पर बात करते हुए मोहम्मद समीरुल ने कहा कि ‘बुरे वक़्त में इंसान अपने घर ही तो जाता है, इसमें इतनी चौंकाने वाली क्या बात है’?
22 मार्च को एक दिन के लॉकडाउन से हमें कोई दिक्कत नहीं थी, लेकिन जब इसे बढ़ाया, तो मुझे पता था कि मैं दिल्ली में सर्वाइव नहीं कर पाऊंगा. इसलिए मैंने अपने कुछ जानने वाले लोगों के साथ रिक्शे से ही घर निकलने की योजना बनाई. इस दौरान मैं फ़ोन, चार्जर, 2 कंबल, पानी वाला जग और 700 रुपये जेब में रखकर 23 मार्च की शाम दिल्ली से निकल पड़ा. 30 मार्च को पूरे 8 दिन बाद मैं मधुबनी ज़िले में स्थित अपने गांव पहुंचा.

इस दौरान प्रशासन द्वारा मुझे घर के पास ही एक मेडिकल कॉलेज में 14 दिनों के लिए क़्वारंटीन में रखा गया. क़्वारंटीन सेंटर में परिवार के लोग मुझे चाय और नाश्ते देने आते थे, जिसे वे बाहर फ़र्श पर रखकर चले जाते थे. इसके बाद आख़िरकार 13 अप्रैल को मैं अपने घर जा पाया.
मैं कभी स्कूल नहीं गया. इसलिए दिहाड़ी मज़दूरी करना ही मेरे पास एकमात्र रास्ता था. साल 2002 में जब मैं सिर्फ़ 19 साल का था, तभी काम की तलाश में दिल्ली आ गया था. इस दौरान मैं आज़ाद मार्किट में साइकिल (समान ढोने वाला रिक्शा) चलाने लगा. तब मैं सदर बाजार से आज़ाद मार्किट सामान ढोने का काम करता था.

इस दौरान मैं दिन के 200 से 500 रुपये कमा लेता था, लेकिन कभी ऐसा भी होता था कि दिनभर में 1 रुपये की कमाई भी नहीं हो पाती थी. कभी-कभी तो मुझे दो दिन तक कोई काम ही नहीं मिलता था. इसलिए कई बार तो मैं दो दो दिन भूखा भी रहा.
मोहम्मद समीरुल ने बताया कि जिस साइकिल (समान ढोने वाला रिक्शा) से मैं घर पहुंच पाया हूं उसे मैंने 3 महीने पहले ही 4500 रुपये में ख़रीदा था. यही उसकी कमाई का एकमात्र सहारा है. दिल्ली में मेरे पास रहने के लिए कोई छत नहीं थी, इसलिए खुले आसमान के नीचे इसी रिक्शे पर सोता था.

26 मार्च को मुझे पता चला कि देशभर में लॉकडाउन लागू कर दिया गया है. मैं ये भी जनता था कि घर वापस लौटने पर मेरे पास कोई काम नहीं होगा. मैं दिहाड़ी मज़दूर हूं. गांव में भी हमारे पास खेती के लिए ज़मीन नहीं है. ऐसे मुश्किल समय में जीवित रहने के लिए मुझे हर हाल में काम चाहिए.
ये बेहद दुःखद है. इस बीमारी को हर हालत में रोकने की ज़रूरत है. वरना हम जैसे ग़रीब लोगों का जीवित रह पाना मुश्किल हो जायेगा.