उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ में एक ट्रक द्वारा अलग-अलग स्थानों पर कई किलो सड़े आलू फेंके गए. इसके अलावा कड़ी सुरक्षा के घेरे में स्थित मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के आवास के सामने भी सड़े हुए आलू पाए गये.
शनिवार सवेरे हुई इस घटना को किसने अंजाम दिया, ये तो कहना मुश्किल है, लेकिन अटकलें लगाई जा रही हैं कि किसानों ने ही सरकार की आलोचना के लिए ये कदम उठाया है. यूपी सरकार ने 1 क्विंटल आलू की दर 487 रुपये रखी है, जबकी किसानों की मांग थी कि ये दर 1000 रुपये होनी चाहिए.
इस घटना के बाद 4 कॉन्सटेबल और 1 सब-इंस्पेक्टर को ‘अपनी ड्यूटी ठीक से ना निभाने के लिए’ निलंबित कर दिया गया है.
सीनियर सुप्रीटेंडेंट दीपक कुमार ने बताया,
हज़रतगंज थाने के इंस्पेकटर राहुल सोनकर ने एक ट्रक को आलू गिराते देखा था, उसका नंबर नोट कर लिया गया है. ट्रक की खोज चल रही है. शुरुआती जांच में ये पता चला है कि ये हरकत किसी राजनैतिक पार्टी ने नहीं की है.
पुलिस का कहना है कि कोहरे और अंधेरे का फ़ायदा उठाकर इस घटना को अंजाम दिया गया है.
सीएम आदित्यनाथ ने कहा कि कृषि संबंधी समस्याओं को हल करने के लिए एक समिति का गठन किया जायेगा. किसानों की बदहाली का सीधा ज़़िम्मेदार पुरानी सरकारों को बताते हुए उन्होंने ये बात कही.
समाजवादी पार्टी के नेशनल सेक्रेट्री, राजेंद्र चौधरी ने कहा कि किसानों को आलू के लिए 2 रुपये/किलो भी नहीं मिल रहे हैं.
आलू से किसी का फ़ायदा हो या ना हो, आस-पास के लोगों ने इसका भरपूर फ़ायदा उठाया और आलू बटोरे. म्युनिसिपालिटी के वर्कर्स को साफ़-सफ़ाई करने में अच्छी-ख़ासी मशक्कत करनी पड़ी.
लखनऊ में इस तरह का प्रोटेस्ट नया नहीं है. पिछले साल अक्टूबर में सैंकड़ों किसानों ने गन्ने जलाये थे. लेकिन ये प्रोटेस्ट भारतीय किसान यूनियन ने किया था.
अब तक किसी भी यूनियन ने आलू फेंककर प्रोटेस्ट करने की ज़िम्मेदारी नहीं ली है.