सड़क पर सभी बाइकें एक तरफ़ और अकेली बुलेट एक तरफ़. ये कहना गलत नहीं होगा कि सुपरबाइक्स की रेस में बुलेट आज भी युवाओं की पहली पसन्द बनी हुई है. हमेशा से ऐसा ही था ये कहना गलत होगा, क्योंकि एक समय ऐसा भी था, जब कंपनी बाज़ार में उपभोक्ताओं की तलाश कर रही थी. साल 2000 में नौबत यहां तक हो गई थी कि निर्माताओं ने इस कंपनी को बंद करने का ही निर्णय ले लिया था.

इसके बावजूद आज कंपनी जिस मुकाम पर है उसका सारा श्रेय रॉयल एनफील्ड के CEO सिद्धार्थ लाल को जाता है. उनकी ही रणनीतियों का परिणाम है कि आज रॉयल एनफील्ड अपने आप में ही एक बड़ा ब्रांड बन चुका है.

2004 में कंपनी इस स्थिति में नहीं थी. 14 बड़े ऑटोमोबाइल ब्रांड्स के बीच रॉयल एनफील्ड सबसे निचले पायदान पर थी. ऐसे समय में सिद्धार्थ ने कड़े फ़ैसले लिए और एनफील्ड को फिर से ज़िंदा करके इतिहास को ख़त्म होने से बचाया.

सिद्धार्थ की मार्केटिंग स्ट्रेटेजी और अपील ने 5 सालों के अंदर ही इसे युवाओं की पहली पसन्द के साथ ही देश के सबसे ब्रांड्स के बीच शुमार कर दिया. इसके लिए सिद्धार्थ ने बाइक कल्चर की शुरुआत की, जिसके तहत उन्होंने ‘माउंटेन बाइकिंग’ जैसे इवेंट्स को स्पांसर करना शुरू किया. इसका असर ये हुआ कि लोग लद्दाख जैसे इलाके में जाने के लिए बुलेट को तहरीज देने लगे.

सिद्धार्थ की स्ट्रेटेजी का ही असर था कि 2005 के अंत तक कुल मिला कर 25,000 बुलेट सड़क पर उतर चुकी थीं. कंपनी के आंकड़ों की माने, तो 2014 तक कंपनी 300,000 बाइक बेच चुकी है. इसके अलावा विदेशों में भी कंपनी अपने पैर फैलाने लगी है. हर साल 6000 बाइक विदेशों में सप्लाई की जा रही हैं. हो सकता है कि आने वाले कुछ सालों में विदेशों में भी लोग हार्ली डेविडसन के बजाय बुलेट पर घूमते नज़र आये.