उत्तराखंड हाईकोर्ट ने समलैंगिक जोड़ों के अधिकारों पर विशेष टिप्पणी की है. कोर्ट का मानना है कि भले ही ऐसे जोड़ों को विवाह करने का अधिकार न हो मगर वो एक साथ रहने का अधिकार रखते हैं.  

दरअसल, उत्तराखंड हाईकोर्ट में एक बंदी प्रत्यक्षिकरण याचिका(Habeas Corpus Petition) दायर की गई थी. इसमें याचिकाकर्ता ने शिकायत की थी उसकी दोस्त को उसके परिवारवालों ने जबरन घर में कै़ैद कर रखा है.

pridezillas

इस केस का फ़ैसला सुनाते हुए जस्टिस शरद कुमार शर्मा ने कहा- ‘भले ही समलैंगिक जोड़े क़ानूनन शादी नहीं कर सकते मगर वो शादी के बिना भी साथ रहने यानी लिव-इन में रहने का अधिकार रखते हैं. ये अधिकार उन्हें संविधान के संस्कृति की बहुलता और विविधता की स्वीकृति के तहत दिए गए हैं. ये ऐसे मसले हैं जो राज्य और समाज के नियंत्रण से बाहर हैं.’

lawsisto

हाईकोर्ट ने भी बताया कि लिव-इन रिलेशनशिप में रहने वाले लोगों की सुरक्षा का प्रावधान घरेलू हिंसा अधिनियम के तहत किया गया है. एक व्यक्ति के अपने साथी को चुनने की स्वतंत्रता पर जोर देते हुए हाईकोर्ट ने कहा कि इसलिए उसके अधिकारों की रक्षा कोर्ट को करनी होगी.

liveabout

जज साहब ने आगे कहा- ‘इसलिए कोर्ट की बेंच इस बात पर सहमत है कि समलैंगिक लोगों को साथ रहने से वो रोक नहीं सकते. ये किसी अपराध की श्रेणी में नहीं आता है. अनुच्छेद 21 के तहत ये उनके अधिकारों का हनन होगा.’

हालांकि, याचिकाकर्ता कोर्ट में केस हार गई क्योंकि उनकी पार्टनर कोर्ट में अपने बयान से पलट गई. उनकी पार्टनर ने अदालत में गवाही देते हुए कहा कि वो बिना किसी के दबाव के अपनी मर्ज़ी से अपने परिवार वालों के साथ रह रही है.

kiplinger

12 जून को कोर्ट ने संबंधित महिला के बयान के मद्देनज़र इस केस को ख़ारिज कर दिया था. लेकिन कोर्ट ने इस केस के ज़रिये समाज तक ये बात तो पहुंचा ही दी कि समलैंगिक जोड़े को साथ रहने का अधिकार है.  

News के और आर्टिकल पढ़ने के लिये ScoopWhoop Hindi पर क्लिक करें.