असम में बीजेपी सरकार ने शिक्षा से जुड़ा ताज़ा फ़ैसला विरोधी दलों को नागवार गुज़र रहा है. मुख्यमंत्री सरबानंद सोनोवाल ने हाल ही में एजुकेशन सिस्टम से जुड़े महत्वपूर्ण फ़ैसलों की ट्विटर पर जानकारी दी. इनमें सबसे प्रमुख, आठवीं कक्षा तक के छात्रों के लिए संस्कृत भाषा को अनिवार्य करना है.
कैबिनट ने निर्णय लिया है कि आठवीं कक्षा तक असम के सभी स्कूलों में संस्कृत भाषा को एक अनिवार्य विषय की तरह पढ़ाया जाएगा. इस फैसले को राज्य के सभी 42,300 स्कूलों में लागू किया जाएगा.
Also the Cabinet has decided that all the schools will teach Sanskrit as a compulsory language up to 8th Standard.
— Sarbananda Sonowal (@sarbanandsonwal) February 28, 2017
हालांकि राज्य सरकार के इस फैसले पर छात्र संगठनों और विपक्षी दलों ने तीखी प्रतिक्रिया दी है. ऑल असम स्टूडेंट्स यूनियन (AASU) ने इस फैसले की आलोचना करते हुए कहा है कि सरकार को संस्कृत से ज़्यादा, असमी भाषा के प्रचार पर ज़ोर देना चाहिए.
AASU के चीफ़ एडवाइज़र समुज्जल भट्टाचार्य के मुताबिक, ऐसा नहीं है कि हम कैबिनेट के इस निर्णय के पूरी तरह से खिलाफ़ है, लेकिन सरकार को इस बात पर अपना पक्ष रखना चाहिए कि क्या अब असम में चार भाषाओं का फॉर्मूला अपनाया जाएगा या फिर दूसरे राज्यों की तरह ही तीन भाषा का फॉर्मूला काम करता रहेगा?
उन्हें डर है कि कहीं राज्य सरकार के संस्कृत भाषा पर अत्यधिक फोकस के चलते असमी भाषा को नुकसान न पहुंचे. उन्होंने कहा कि ये ज़रूरी है कि असमी, राज्य के स्कूलों में एक अनिवार्य भाषा बनी रहे.
असोम जातियताबादी युवा छात्र परिषद(AJYCP) के प्रेज़ीडेंट बिराज कुमार ने आरोप लगाया कि संस्कृत भाषा को राज्य में आठवीं क्लास तक लागू करना आरएसएस की एक सोची-समझी साज़िश है. सरकार पहले से ही इस बात की तैयारी कर रही थी कि शिक्षकों की कमी के चलते, दूसरे राज्यों से संस्कृत के शिक्षकों को नौकरी पर लाया जाए, पर हम ऐसा होने नहीं देंगे.
बिराज ने कहा कि वे संस्कृत के पढ़ाए जाने के खिलाफ़ नहीं है. संस्कृत देश की सबसे प्राचीन भाषाओं में से एक है और इसे स्कूल कॉलेजों में पढ़ाए और प्रचारित किए जाने की ज़रूरत है. पर जिस तरह से राज्य सरकार इसे आनन-फानन में लागू करना चाह रही है, वह बेहद निंदनीय है. स्टेट में संस्कृत के शिक्षकों की कमी होने पर इस मामले को धैर्य से निपटने की बजाए, संस्कृत से जुड़े कई निर्णयों को स्कूलों- कॉलेजों में थोपा जा रहा है.
कृषक मुक्ति संग्राम समिति(KMSS) के लीडर अखिल गोगोई ने आरोप लगाया कि राज्य के शिक्षा मंत्री हिमांता बिस्वा सर्मा आरएसएस के साथ नज़दीकियां बढ़ा रहे हैं. संस्कृत का अनिवार्य होना इसी दोस्ती का नतीजा है. बेहतर होता अगर राज्य सरकार, संस्कृत को थोपने की जगह स्थानीय भाषा असमी के प्रचार-प्रसार में ज़्यादा दिलचस्पी दिखाए.
वहीं एनएसयूआई के स्टेट जनरल सेक्रेटी जयंता दास ने कहा कि वे संस्कृत को पढ़ाए जाने के विरोध में नहीं है लेकिन जिस तरह से बीजेपी सरकार इसे बच्चों, स्कूलों और राज्य के एजुकेशन सिस्टम पर थोपने की कोशिश कर रही है, वह गलत है.
जेएनयू, हैदराबाद यूनिवर्सिटी और डीयू के बाद बीजेपी सरकार को अब असम में भी विवादों का सामना करना पड़ सकता है. छात्र संगठनों और विपक्षी दलों की तीखी आलोचना के बाद ये देखना दिलचस्प होगा कि मुख्यमंत्री सोनोवाल इस मामले में क्या रुख अपनाते हैं.