प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी बेशक अमेरिका से ले कर ऑस्ट्रेलिया तक हिंदी में भाषण दे कर हिंदी की विश्वपटल पर पहचान बनाने की कोशिश करते हुए दिखाई दे रहे हों, पर असलियत ये है कि हिंदी आज केवल एक ख़ास दायरे तक ही सिमट कर रह गई. हिंदी की तुलना में संस्कृत ज़्यादा हाशिये पर पड़ी हुई दिखाई देती है, जो केवल पूजा-पाठ और मंदिर-मठ तक ही पढ़ी-पढ़ाई जाती है.

हालांकि, इन सब के बीच कर्नाटक के झिरी गांव से उम्मीद एक किरण आती हुई दिखाई दे रही है, जहां के बारे में कहा जा रहा है कि इस गांव में रहने वाला बच्चा-बच्चा संस्कृत का ज्ञाता है. नई दुनिया की ख़बर के मुताबिक, ऐसा आरएसएस के कुछ कार्यकर्ताओं और पदाधिकारियों की कोशिशों की वजह से ही मुमकिन हुआ है कि सरकार की उदासीनता के बावजूद आज गांव के अनपढ़ लोग भी फ़र्राटेदार संस्कृत में बात कर रहे हैं. गांव के लोग पिछले 14 वर्षों से गांव में संस्कृत विद्यालय खोलने की मांग कर रहे हैं, पर सरकार के कानों में आज तक कोई जूं नहीं रेंगी, जिसके बाद संस्कृत के कुछ जानकारों ने गांव के सरकारी स्कूल में हर रोज़ एक घंटे की निःशुल्क संस्कृत कक्षा को शुरू किया.

आरएसएस के प्रांतीय गौ सेवा प्रमुख उदयसिंह चौहान के कहना है कि ‘2006-07 में कराये गए सर्वे के के मुताबिक गांव में 70 फीसदी लोग संस्कृत के जानकार थे, पर अब इनकी संख्या घट कर 50 फीसदी के आसपास ही रह गई है.’ संस्कृत को बढ़ावा देने के लिए गांव में चल रहे इस निःशुल्क संस्कृत शिक्षा संस्थान में सिर्फ़ गांव के बुज़ुर्ग ही नहीं, बल्कि आम विद्यार्थियों सहित कान्वेंट स्कूलों में पढ़ने वाले बच्चे भी शामिल हो रहे हैं. ये इन्हीं लोगों की कोशिशों का नतीजा है कि गांव में एक ऐसा परिवार भी है, जो घर में भी सिर्फ़ संस्कृत में ही बात करता है. गांव के लोगों द्वारा इस परिवार को ‘संस्कृत गृहम’ की उपाधि से नवाज़ा गया है.

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कर्नाटक के शिमोगा ज़िले का मुत्तुर गांव पहले ही दुनिया में संस्कृत बोलने के लिए अपनी पहचान बनाये हुए है, पर झिरी कई मायनों में उससे अलग है. दरअसल मुत्तुर गांव ब्राह्मण बाहुल्य इलाका है, जिसे संस्कृत विरासत के रूप में अपने पूर्वजों से मिली है, जबकि झिरी पिछड़े वर्ग की जनसंख्या वाला गांव है, जहां केवल एक ही ब्राह्मण परिवार है. ऐसे में झिरी, मुत्तुर से कहीं ज़्यादा आगे दिखाई पड़ता है.