कोरोना महामारी के कारण लगाए गए लॉकडाउन के दौरान नींद पसंद लोगों ने इसका ख़ूब फ़ायदा उठाया. हालांकि, एक अध्ययन में पता चला है कि लॉकडाउन के दौरान लोगों ने नींद तो भरपूर ली, लेकिन नींद की गुणवत्ता अच्छी नहीं थी.
दरअसल, हाल ही में स्विट्जरलैंड की ‘University of Basel’ के शोधकर्ताओं द्वारा लॉकडाउन के दौरान मार्च से अप्रैल के बीच ऑस्ट्रिया, जर्मनी और स्विट्ज़रलैंड के 435 लोगों की नींद के पैटर्न का विश्लेषण किया था.
रिसर्च के मुताबिक़, इस दौरान इन सभी 435 लोगों की नींद पर अध्ययन किया गया, तो पता चला कि हर कोई औसतन 15 मिनट अधिक सोया. अध्ययन में ये भी पता चला कि चला कि लॉकडाउन के दौरान लोगों ने नींद तो भरपूर ली, लेकिन नींद की गुणवत्ता बिलकुल भी अच्छी नहीं थी.
शोधकर्ताओं का दावा है कि, लॉकडाउन के पहले सप्ताह में ही अधिकतर लोगों की नींद पूरी हो गई थी. इस दौरान घर में बंद रहने की वजह से लोग आराम महसूस करने की बजाय बेचैन रहने लगे. इसके पीछे की वजह नौकरी और पैसे को लेकर की गई चिंता थी.
वहीं ब्रिटेन के ‘किंग्स कॉलेज’ द्वारा ब्रिटेन के 2,254 युवाओं पर किये गए अध्ययन में पता चला कि, लॉकडाउन के दौरान लोगों को नींद संबंधी कई तरह की तकलीफ़ों का सामना करना पड़ा. सर्वे में शामिल 38% लोगों ने कहा कि इस दौरान उन्होंने डरावने सपने भी देखे. हालांकि, लॉकडाउन में कुछ लोग ख़ूब सोये, लेकिन सामान्य दिनों की तुलना में उन्होंने थकान ज़्यादा महसूस की.
‘किंग्स कॉलेज’ लंदन के पॉलिसी इंस्टीट्यूट के बॉबी के मुताबिक़, लॉकडाउन के कारण दो तिहाई लोगों को नौकरी जाने का डर और वित्तीय संकट की चिंता सता रही है और जिसका सीधा असर उनकी नींद पर पड़ा.
15 मिनट अधिक सो रहे हैं लोग
वैज्ञानिकों का कहना है कि लॉकडाउन का असर लोगों में लंबे समय तक रहेगा. ज़िंदगी पहले की तरह पटरी पर लौटने की संभावना कम ही है. लोगों को लंबे समय के लिए भय के साए में ही जीना होगा. इसी के चलते दिनचर्या सामान्य होने के बजाय तनाव, चिड़चिड़ापन और ग़ुस्से से भरी रहने की संभावना है.