ग्लोबल वॉर्मिंग के बारे में दुनिया भर के बड़े नेताओं ने बहुत कुछ कहा है.  

हमारे प्रधानमंत्री भी इस बारे में बहुत कुछ कह चुके हैं: 

ख़ैर, दुनिया भर के बड़े नेताओं ने ग्लोबल वॉर्मिंग के ख़िलाफ़ कोई ठोस क़दम नहीं उठाया. बड़ी-बड़ी Conferences में बातें ही की गईं. इतने बड़े मुद्दे को वर्ल्ड लीडर्स ने तो नज़रअंदाज़ कर दिया लेकिन दुनिया भर के बच्चे इसके ख़िलाफ़ एकजुट हो गए हैं. 

कल पूरी दुनिया के बच्चे अपने-अपने देशों में एकत्रित हुए और उनकी सरकारों द्वारा की जा रही इस लापहरवाही पर अपना विरोध जताया.

ये कोई छोटा-मोटा मार्च नहीं था…. भीड़ इतनी थी कि बड़े-बड़े नेताओं की रैलियां छोटी पड़ जाएं. आयरलैंड के डबलिन से लेकर भारत के दिल्ली में, हर जगह ये रैली निकली.

भारत में दिल्ली के अलावा, बेंगलुरु, मुंबई, हैदराबाद, उदयपुर लेकर बिहार के गांव तक में बच्चे सड़कों पर सरकार से सवाल करने उतरे. 

ये प्रोटेस्ट एकदम से कैसे शुरू हुआ? 

स्वीडन की एक 16 साल की लड़की है, अभी-अभी उसे उसकी सरकार ने नोबेल पीस प्राइज़ के लिए नॉमिनेट किया है. पिछले कई सालों से ये बच्ची ग्लोबल वॉर्मिंग के ख़िलाफ़ लड़ाई लड़ रही है और वो ट्रम्प जैसे ताकतवर प्रेज़िडेंट को ग्लोबल वॉर्मिंग पर लचर रवैये के लिए लताड़ चुकी है. 

ग्रेटा 2018 में हर शुक्रवार स्कूल मिस कर के स्वीडन की संसद के बाहर प्रोटेस्ट करने जाती थी. मकसद का ग्लोबल वॉर्मिंग की तरफ़ बातचीत शुरू करना और सरकार को उसके ढीले रवैये के लिए ज़िम्मेदार ठहराना. ग्रेटा से ही प्रेरणा पा कर दुनिया भर के देशों के बच्चों ने अपनी-अपनी सरकारों से ग्लोबल वॉर्मिंग पर सवाल करते हुए Friday प्रोटेस्ट किये. 

ट्विटर पर कई लोगों ने इन बच्चों का मज़ाक उड़ाते हुए कहा था कि कहीं स्कूल बंक मारने का बहाना न ढूंढ रहे हों. इन तस्वीरों में उन सभी लोगों के लिए मुंहतोड़ जवाब था: 

इन बच्चों ने अपनी तरफ़ से सवाल पूछ लिए हैं. क्या सरकारों और लीडर्स के पास जवाब है?