सिंगापुर की नानयंग टेक्नोलॉजिकल यूनिवर्सिटी के वैज्ञानिकों ने बचे हुए खाने से एंटीबैक्टीरियल पट्टियां बना दी हैं. इस खोज ने खाने की बर्बादी कम करने का रास्ता खोज लिया है.
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सिंगापुर स्थित एनटीयू के शोधकर्ताओं ने बचे हुए ड्यूरियन के छिलके से सेल्युलोस पाउडर निकालकर उसे बैक्टीरियारोधी पट्टियों में तब्दील कर दिया. इसके लिए छिलकों को सुखाया गया और फिर ग्लाइसरोल में मिलाया किया गया. इस मिश्रण से नर्म हाइड्रोजेल तैयार हुआ जिसे काटकर पट्टियां बनाई गईं.
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फेंकने से बेहतर है
प्रोफेसर विलियम चेन एनटीयू के फूड ऐंड साइंस प्रोग्राम के निदेशक हैं. वह बताते हैं, “सिंगापुर में हम हर साल लगभग एक करोड़ बीस लाख ड्यूरियन खाते हैं. लेकिन उसका गुदा ही खाया जा सकता है, छिलके और बीज का तो कुछ कर नहीं पाते. इसका बस पर्यावरण को नुकसान ही होता है.”
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ड्यूरियन में आधे से ज्यादा हिस्सा तो छिलका ही होता है जिन्हें फेंक दिया जाता है और वे कचरे के रूप में जलवायु के लिए खतरनाक हो जाते हैं. विलियम चेन की टीम ने उन्हीं छिलकों का इस्तेमाल किया.
चेन बताते हैं कि उन्होंने जो तकनीक ईजाद की है वह खाने की अन्य चीजों जैसे सोया बीन और अनाज आदि को भी हाइड्रोजेल में बदल सकती है.
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किफायती और असरदार
इस हाइड्रोजेल से जो पट्टियां बनाई गई हैं, वे घावों आम पट्टियों के मुकाबले ज्यादा आरामदायक हैं. वे घाव को ठंडा और नम रखती हैं जिससे घाव भरने की प्रक्रिया तेज हो जाती है.
शोधकर्ताओं का कहना है कि कचरे और खमीर से पट्टियां बनाना आम पट्टियां बनाने के मुकाबले बहुत सस्ता पड़ता है. आम पट्टियों में भी एंटिबैक्टीरियल गुण होते हैं लेकिन वे चांदी या कॉपर जैसी महंगी धातुओं से लिए जाते हैं. इसलिए उनकी कीमत बढ़ जाती है.
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सिंगापुर में ड्यूरियन फल बेचने वाले टान इंग चुआन बताते हैं कि मौसम के दौरान वह लगभग 1800 किलोग्राम फल बेचते हैं. यानी औसतन रोजाना लगभग 30 पेटियां. वह कहते हैं, “जिस चीज को आमतौर पर हम फेंक देते हैं उससे जुड़ी खोज इस फल को और ज्यादा चिरस्थायी बनाएगी.”
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