सीरिया में आतंक से पीड़ित लोगों को मदद पहुंचाने की बात हो, या नेपाल में भूकंप की तबाही के बाद लोगों की सहायता करने के लिए आगे आने का किस्सा हो, सिख समुदाय हर त्रासदी के समय पीड़ितों की मदद करने के लिए हमेशा तैयार रहता है.

म्यांमार में डर और ख़ौफ़ के साये में अपने घरों को छोड़ने पर मजबूर रोहिंग्या मुसलमानों की मदद करने के लिए एक बार फिर सिख समुदाय एकजुट हुआ है और बांग्लादेश में इन शरणार्थियों को मदद पहुंचा रहा है. इंडियन एक्सप्रेस की ख़बर के मुताबिक, ‘खालसा ऐड’ नाम के एक सिख संगठन के कई वॉलंटियर भारत-बंगलादेश पर मौजूद Teknaf रिफ्यूजी कैंप में रोहिंग्या मुसलमानों की मदद के लिए इकट्ठा हुए हैं. इस संगठन के मैनेजिंग डायरेक्टर अमरप्रीत सिंह के मुताबिक, यहां कैम्पों में रह रहे लोगों की हालत बहुत ख़राब है.

अमरप्रीत का कहना है कि ‘वो यहां 50 हज़ार लोगों की मदद के लिए सामान लेकर आये थे, पर यहां 1 लाख से भी ज़्यादा की संख्या में पीड़ित मौजूद हैं. वो यहां बिना खाना-पानी, कपड़े और शेल्टर के रह रहे हैं, जिसको जहां जगह मिल रही है, वो वहीं जा कर बैठ रहा है. यहां दिन रात-बारिश हो रही है, पर चाह कर भी ये लोग कहीं नहीं जा सकते. बच्चे बिना कपड़ों के भीख मांग रहे हैं, जिन लोगों को कैंप में जगह नहीं मिली वो सड़क किनारे ही मदद की आस में बैठे हुए हैं.’ अमरप्रीत आगे कहते हैं कि ‘हमारी कोशिश है कि कोई भी शख़्स भूखा न सोये, जिसके लिए हम यहां लंगर चला रहे हैं.’
खालसा ऐड की टीम फ़िलहाल यहां लोगों के लिए पानी और लंगर का बंदोबस्त कर रही है. Teknaf, बंगलादेश की राजधानी ढाका से करीब 10 घंटे की दूरी पर है, जहां से सभी ज़रूरी सामान लाया जा रहा है. अमरप्रीत का कहना है कि जब तक ये समस्या सुलझ नहीं जाती तब तक खालसा मदद के लिए लंगर लगाता रहेगा. पीड़ितों की मदद के लिए और भी वॉलंटियरों को Teknaf की तरफ़ बुलाया जा रहा है, जिसे रिलीफ़ ऑपरेशन में कोई दिक्कत न आये.

जम्मू कश्मीर से मदद करने आये खालसा ऐड के वॉलंटियर जीवनज्योत सिंह का कहना है कि ‘ये लोग 10 दिन तक लगातार पैदल चल कर पहले म्यांमार से निकले. उसके बाद नाव पर सवार हो कर यहां पहुंचे. इनकी स्थिति काफ़ी दयनीय है.’
म्यांमार की स्टेट कॉउंसलर Aung San Suu Kyi से पहले ही संयुक्त राष्ट्र रोहिंग्या मुस्लिमों के साथ हो रहे अमानवीय और जघन्य बर्ताव के लिए जवाब मांग चुका है. रिपोर्ट की मानें, तो करीब 2.70 लाख रोहिंग्या मुसलमान बांग्लादेश में शरण ले चुके हैं, जबकि इससे ज़्यादा बॉर्डर पार कर चुके हैं.