एक ओर जहां बर्मा छोड़ रहे रोहिंग्या मुसलमानों के लिए भारत ने खास सकारात्मक रूख नहीं दिखाया है, वहीं बांग्लादेश ने उन्हें शरण देने की पेशकश की है. इसके अलावा म्यांमार में बढ़ती हिंसा के बीच दिल्ली में रोहिंग्या मुसलमानों ने प्रदर्शन करके भारत सरकार से उन्हें म्यांमार वापस नहीं भेजने की अपील की है. इस संकट के बीच कई ऐसे रोहिंग्या मुसलमान भी हैं जो अपनी जान बचाने के लिए धर्म परिवर्तन कर चुके हैं.
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जॉन सुल्तान नाम के एक शरणार्थी का कहना था कि भारत में आने के बाद उसकी तरह ही झुग्गी में रहने वाले कई रोहिंग्या मुसलमान ईसाई धर्म अपना चुके हैं. हालांकि उसने इसे लेकर कोई कारण नहीं दिया. गौरतलब है कि 2012 में जॉन सुल्तान जब राखिन में रहता था तो वो जॉन नहीं, बल्कि मोहम्मद सुल्तान था. सुल्तान के घर वालों का बेरहमी से कत्ल कर दिया गया और वो किसी तरह अपनी जान बचा कर भागा था.
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हालांकि, इसकी संख्या कम है. दिल्ली में 4500 रोहिंग्या मुसलमानों के मुकाबले 150 रोहिंग्या ईसाई हैं. एक शख़्स के मुताबिक, मुसलमानों को स्टीरियोटाइप कर दिया गया है. उन्हें खतरा समझा जाता है. शायद इसी कारण से कुछ रोहिंग्या मुसलमान अपना धर्म बदल रहे हैं. इसी छवि के चलते ही भारत सरकार भी इन 40000 रोहिंग्या मुसलमानों को वापस भेजना चाहता है.
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रोहिंग्या मुस्लिम वेलफ़ेयर के एक एक्टिविस्ट, मोहम्मद सलीम सिराज ने कहा, इनमें से ज़्यादातर लोगों को अपना धर्म बदलने के लिए उकसाया जाता है. इन्हें लालच दिया जाता है. कुछ लोग भारत आकर अपना धर्म बदल लेते हैं, वहीं कई ऐसे भी हैं जिन्होंने बांग्लादेश में ही अपना धर्म बदल लिया था.
यूएनएचसीआर के मुताबिक, भारत में इस समय 5000 म्यांमार शरणार्थी रह रहे हैं. इनमें से 90 प्रतिशत चिन ईसाई हैं, जो पश्चिमी दिल्ली में रह रहे हैं. इनमें से कई लोग 1997-98 में ही यहां आ गए थे क्योंकि इन लोगों के साथ अपने ही देश में सेना द्वारा लगातार अत्याचार किया जा रहा था और इन लोगों के मूलभूत अधिकार छीने जा रहे थे.
इसके अलावा दो मुस्लिम रिफ़्यूजी ने सुप्रीम कोर्ट में पीआईएल दाखिल किया है जिसमें 40,000 रोहिंग्या मुसलमानों को वापस भेजने के फ़ैसले को चुनौती दी है.