‘प्यार नहीं हुआ UPSC का एग्ज़ाम हो गया, 10 साल से क्लियर ही नहीं हो रहा.’ कहने को तो ये बस एक फ़िल्मी डॉयलाग है, मगर असल में ये एक कठिन परीक्षा में सफलता और असफलता के बीच के लंबे संघर्ष को बयां करता है. मगर हम बात आज UPSC की नहीं, बल्कि दुनिया की सबसे कठिन परीक्षाओं में से एक माने जाने वाले दक्षिण कोरिया के Suneung Exam की कर रहे हैं.
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ये वो एग्ज़ाम है, जिसके कारण पूरा दक्षिण कोरिया हिल जाता है. ट्रेन और स्टॉक मार्केट तक का समय बदल जाता है. बच्चे डिप्रेशन का शिकार हो जाते हैं. कुछ तो आत्महत्या तक कर लेते हैं. मगर सवाल है कि आख़िर क्या है ये एग्ज़ाम और क्यों ये इतना ज़्यादा कठिन है?
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Suneung Exam क्या है?
बता दें, Suneung Exam यूनिवर्सिटी में दाख़िले के लिए आयोजित की जाती है. कोरियाई शब्द Suneung, College Scholastic Ability Test (CSAT) का संक्षिप्त नाम है. दक्षिण कोरिया में हायर एजुकेशन हासिल करने की इच्छा रखने वाला हर बच्चा इस परीक्षा में सफल होना चाहता है. क्योंकि इसके बिना उन्हें टॉप यूनिवर्सिटीज़ में एडमिशन नहीं मिलेगा.
आसान नहीं है परीक्षा में सफ़ल होना
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दरअसल, साउथ कोरिया में लोगों का मानना है कि इस परीक्षा में अगर कोई बच्चा सफल हो गया तो उसका भविष्य सुरक्षित हो जाएगा. आगे चलकर उसे अच्छी नौकरी और बड़े मौक़े मिलेंगे. ऐसे में हर पेरेंट्स अपने बच्चे को इस परीक्षा की तैयारी करवाते हैं. परीक्षा से पहले मंदिरों में भीड़ लग जाती है.
मगर ये परीक्षा इतनी आसान नहीं है. हर साल नवंबर महीने में क़रीब 5 लाख से ज़्यादा बच्चे इस परीक्षा में बैठते हैं. बड़े से बड़ा एग्ज़ाम 2 से 3 घंटे चलता है, लेकिन Suneung Exam 8 घंटे तक जारी रहता है. परीक्षा में पूछे जाने वाले सवाल भी बेहद कठिन होते हैं. ऐसे में स्टूडेंट्स पर काफ़ी दबाव रहता है.
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ये परीक्षा दक्षिण कोरिया में कितनी महत्व रखती है, उसका अंदाज़ा इससे लगा सकते हैं कि इस परीक्षा के लिये पूरे देश का शेड्यूल बदल जाता है. ट्रेन, फ़्लाइट, सरकारी ऑफ़िस, बैंक और यहां तक कि स्टॉक मार्केट के खुलने का समय बदल जाता है. इतना ही नहीं, जो स्टूडेंट्स एग्ज़ाम सेंटर तक नहीं पहुंच सकते, उनको पुलिस की गाड़ी के ज़रिए पहुंचाया जाता है. वहीं, बड़ी संख्या में लोग इन स्टूेडेंट्स का हौसला बढ़ाने के लिये एग्ज़ाम सेंटर के बाहर खड़े नज़र आते हैं.
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स्टूडेंट्स पर परीक्षा का दबाव बन रहा डिप्रेशन का कारण
इस परीक्षा पर काफ़ी सवाल भी उठते हैं. लोगों का मानना है कि ये एग्ज़ाम ज़रूरत से ज़्यादा कठिन है. ऊपर से इसमें सफ़ल होने को सामाजिक प्रतिष्ठा से जोड़कर देखने के कारण बच्चों पर ज़्यादा दबाव आ जाता है. क्योंकि जो बच्चा असफ़ल हो जाता है, उसे समाज में कमज़ोर स्टूडेंट की तरह देखा जाता है. साथ ही, उसके लिये भविष्य में मौक़े भी कम हो जाते हैं.
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ऐसे में स्टूडेंट्स काफ़ी दबाव झेलते हैं. जिसके चलते वो डिप्रेशन का शिकार हो जाते हैं. कुछ इस स्थिति से उभर नहीं पाते और आत्महत्या कर लेते हैं.