शिक्षित होने और ज्ञानी होने में अंतर होता है. ये बात अगर आप नहीं समझ पाए हैं तो फिर 82 साल के अली मानिकफ़ान की ज़िंदगी की तरफ़ आपको एक बार देखना चाहिए. एक ऐसा शख़्स जिसने 7वीं क्लास में पढ़ाई छोड़ दी, पर सीखना नहीं छोड़ा. इसी का नतीजा है कि वो 14 भाषाओं का ज्ञान रखते हैं. उन्होंने अपने हाथ से एक बड़ा जहाज़ तैयार किया है. इलेक्ट्रिसिटी जनरेट की और मछलियों को लेकर ऐसी समझ पैदा की है कि उनके नाम पर ही एक मछली का नाम रख दिया गया.

इस साल जिन 102 हस्तियों को पद्म श्री पुरस्कार दिया गया, उसमें से एक नाम है अली मानिकफ़ान का भी है. उन्हें ये अवॉर्ड ‘ग्रासरूट इनोवेशन’ कैटेगरी में मिला है. अवॉर्ड मिलने पर अली ख़ुश हैं, पर वो किसी तरह की मान्यता नहीं चाहते हैं. वो कहते हैं कि ‘मैं रेगिस्तान में एक फूल की तरह रहना पसंद करता हूं, जो खिलता है और मुरझाता है.’
Shri Ali Manikfan is a Marine Researcher & Ecologist from Minicoy Island in Lakshadweep. He is known for his multi-talents including agriculture and command over multiple languages. He will be awarded Padma Shri 2021. #PadmaAwards2021 #PeoplesPadma pic.twitter.com/iQuuCcXhqU
— MyGovIndia (@mygovindia) January 28, 2021
स्कूल ने नहीं ज़िंदगी ने सिखाया
लक्षद्वीप के मिनिकॉय आइलैंड पर पैदा हुए अली मानिकफ़ान ने मरीन रिसर्च से लेकर एग्रीकल्चर सेक्टर तक में काम किया है. जब वो 9 साल के थे, तब उनके पिता ने उन्हें पढ़ाई करने के लिए केरल के कन्नूर भेज दिया था. हालांकि, कन्नूर में अली ने सातवीं कक्षा तक पढ़ाई की और इसके बाद वो वापस आइलैंड लौट आए.

इसके बाद वो 1956 में कोलकाता चले गए, जहां उन्हें अलग-अलग विषयों की कई किताबें पढ़ने को मिलीं. अली को ये किताबें इतनी पसंद आईं कि वो उन्हें लेकर वापस आइलैंड लौट आए. इन्हीं किताबों के ज़रिए उन्होंने कई भाषाएं सीख लीं. इनमें मलयालय, अंग्रेजी, फ्रेंच, हिंदी, जर्मन, लैटिन, सिंहली, रशियन, ऊर्दू, संस्कृत और पर्शियन जैसी भाषाएं शामिल हैं. साथ ही, वो ऐसे लोगों के साथ उठने-बैठने लगे, जिन्हें ये भाषाएं बोलनी आती थीं.
अली कहते हैं कि ‘मुझे औपचारिक शिक्षा की लाइफ़ में उतनी ज़रूरत महसूस नहीं हुई. मैं स्कूल की तुलना में नौकायन से अधिक सीख रहा था.’
दादा से सीखा मछलियों को पहचानने का हुनर
अली के अंदर मछलियों के बारे में जानने की भी काफ़ी जिज्ञासा रहती थी. उनकी ज़्यादतर ज़िंदगी भी आइलैंड पर ही गुज़री थी. ऐसे में उन्हें वहां मौजूद अधिकतर प्रजातियो के बारे में जानकारी थी. उन्होंने ये जानकारियां अपने दादा से मिली थीं, जिन्होंने उन्हें रंग, पंख और कांटों के आधार पर मछलियों की पहचान करना सिखाया था.

इसी की बदौलत साल 1960 में अली को ‘सेंट्रल मरीन फ़िशरीज रिसर्च इंस्टीट्यूट’ में लैब अटेंडेंट के पद पर काम मिला. यहां उन्होंने काफी रिसर्च करते हुए एक दुर्लभ मछली तक की खोज की, और इस मछली का नाम अली के नाम पर यानी ‘अबुदफुद मानिकफानी’ रखा गया. बाद में अली ने साल 1980 में रिटायरमेंट ले लिया.
हालांकि, रिटायमेंट के बाद भी अली का सीखने और अपने हुनर को निखारने का सिलसिला जारी रहा. साल 1981 में अली को ओमान से न्योता आया. उन्हें एक जहाज बनाने के लिए बुलाया गया था. यहां अली ने Tim Severin और 30 कारपेंटरों के साथ मिलकर लकड़ी और कॉयर की मदद से 80 फ़ुट लंबा और 22 फुट चौड़ा एक जहाज़ Sohar ship तैयार किया. इस शिप से टिम ने ओमान से चीन तक का 9,600 किमी का सफ़र भी किया. ये जहाज़ आज भी ओमान के म्यूज़ियम में सुरक्षित रखा है.

ओमान से वापस आकर अली तमिलनाडु के Vedalai में एक गैराज में काम करने लगे. यहां उन्होंने एक कार के इंजन को खोलकर उससे एक बैटरी से चलने वाली रोलर साइकिल बना डाली और अपने बेटे के साथ दिल्ली तक ट्रैवल किया.

इसके बाद अली ने Vedalai में 15 एकड़ की बंजर ज़मीन को स्वदेशी तरीकों से एक छोटे जंगल में बदल दिया. साथ ही यहां उन्होंने ट्रेडिशनल सामान से एक घर भी बनाया. उन्होंने एक पवनचक्की स्थापित कर बिजली भी जेनरेट की. बाद में साल 2011 में वो Olavanna में बस गए.
पिछले 60 साल में वो अलग-अलग जगहों पर रहे हैं. उनके चार बच्चे हैं, जिनमें से किसी ने भी औपचारिक शिक्षा नहीं ली है. उनका एक बेटा मर्चेंट नेवी में है और दो लड़कियां टीचर हैं. अली मानिरफ़ान उन चंद लोगों में से हैं, जिन्होंने दुनिया को बताया है कि जीवन जितना सरल होगा, जिंदगी उतनी ही बेहतर.
Source: Thebetterindia