दुनिया में अपराध करने वाले हैं, तो जुर्म का ख़ात्मा करने वाले भी. मगर कुछ ऐसे हैं, जो न सिर्फ़ अपराध ख़त्म करते हैं, बल्कि अपराधियों को भी मिटाने के लिए जाने जाते हैं. पुलिस विभाग और मीडिया में ऐसे लोगोंं को एनकाउंटर स्पेशलिस्ट (Encounter Specialist) कहा जाता है. देश में कुछ पुलिस वाले इसी नाम से जाने जाते हैं, जिनमें से एक प्रमुख नाम अशोक सिंह भदौरिया (Ashok Singh Bhadoriya) का भी है.
ये भी पढ़ें: मिलिए उस सुपर कॉप नवनीत सिकेरा से, जिसकी ज़िंदगी पर बनी है Web Series ‘भौकाल’
अशोक सिंह भदौरिया वो नाम है, जिन्हें डाकुओं का काल भी कहा जाता था. उन्होंने अपनी पुलिस करियर में क़रीब 116 एनकाउंटर किए हैं. आज हम आपको उन्हीं की कहानी बताने जा रहे हैं.
जब ग्वालियर के बीहड़ों पर डाकुओं का था साम्राज्य
80 और 90 का दशक डाकुओं के ज़िक्र के बिना अधूरा है. ख़ासतौर से मध्य प्रदेश, उत्तर प्रदेश और राजस्थान के लिए. यहां के चंबल के इलाके में उस वक़्त डाकुओं का ही साम्राज्य था. हर अपराध के पीछे कोई न कोई नामी डकैत ज़रूर होता था. ऐसे वक़्त में अशोक भदौरिया की पोस्टिंग मध्य प्रदेश पुलिस में आरक्षक के पद पर हुई थी.
जब उनकी पोस्टिंग हुई, तो शायद किसी को पता था कि वो एक दिन चंबल के डकैतों का काल बनने वाले हैं. मगर शायद भदौरिया का मन इस बात को जानता था. उन्हें ये काम विरासत में मिला था. दरअसल, उनके पिता भी पुलिस में ही थे और एनकाउंटर स्पेशलिस्ट के तौर पर जाने जाते थे.
साल 1996 से वो वक़्त भी आ गया, जब भदौरिया ने बड़े-बड़े डकैतों का शिकार करना शुरू कर दिया. इनमें गड़रिया गैंग से लेकर हरिबाबा गैंग और सुघर सिंह गैंग तक के कुख़्यात डाकू शामिल थे.
अशोक सिंह भदौरिया अपनी AK47 को बुलाते थे डार्लिंग
अशोक सिंह भदौरिया ने बहुत से डकैतों को मारा. एक इंटरव्यू के दौरान वो बताते हैं कि 116 तक एनकाउंटर तो उन्हें याद हैं, मगर उसके बाद नहीं. मगर दिलचस्प बात ये है कि भदौरिया ने क़रीब 100 एनकाउंटर एक ही हथियार से किए. वो थी उनकी AK47, जिसे वो प्यार से डार्लिंग बुलाते थे.
भदौरिया ने मुखबिरों का नेटवर्क पूरे जंगल में फैला रखा था. कहीं भी डकैतों की कोई मूवमेंट होती थी, तो तुरंत उन्हें जानकारी मिल जाती थी. उसके बाद वो अपनी टीम और अपनी डार्लिंग को लेकर शिकार पर निकल पड़ते थे. ये सुनने में भले ही रोमांचकारी लगता हो, मगर हक़ीक़त में बेहद ख़ौफ़नाक और मुश्किल काम था. वो कई-कई दिनों तक जंगल में भटकते थे. खाने को 6-7 दिन पुरानी सूखी रोटी होती थी, जिसे वो लोग गंदे पाने में डुबोकर किसी तरह हलक के नीचे उतारते थे.
विवादों से भी रहा रिश्ता
अशोक सिंह भदौरिया ने कई इनामी डकैतों को ज़मीन के नीचे पहुंचाया था. इनमें 5 लाख का इनामी दयाराम गड़रिया समेत रामबाबू गड़रिया, सोबरन गड़रिया, सुघर सिंह और पप्पू गुर्जर जैसे ख़तरनाक डकैत शामिल थे. एक एनकाउंटर के दौरान तो उन्हें भी गोली लग गई थी. पैर में गोली लगने से वो काफ़ी दिन तक ड्यूटी नहीं कर पाए थे. मगर जब वापस लौटे तो फिर वो उसी रंग में थे.
हालांकि, उनके एनकाउंटर का जैसा सिलसिला चल रहा था, वैसा ही उससे जुड़े विवाद भी साथ-साथ जुड़ने लगे. उन पर कुछ फ़ेक एनकाउंटर के आरोप लगे. कोर्ट में केस हुए, विभागीय जांच हुई. तमाम जांच-पड़ताल उनके काम करने के तरीकों को लेकर हुईं. 2002 में उन पर एक व्यक्ति की हत्या का आरोप भी लगा, जब मुठभेड़ के दौरान उसे गोली लगी. हालांकि, 2004 में इस मामले में न्यायालय ने भदौरिया को बरी कर दिया.
नाम हुआ मगर मन मुताबिक सम्मान नहीं मिला
भदौरिया ने चंबल को बहुत हद तक डकैतों से आज़ाद करने का काम किया. आम लोगों को सुरक्षित किया. 116 एनकाउंटर बहुत बड़ी बात होती है. यही वजह है कि उन्हें 16 बार राष्ट्रपति पदक के लिए नॉमिनेट किया गया. मगर उन्हें एक भी बार ये अवॉर्ड मिला नहीं. उनके परिवार को भी यही शिकायत है कि आख़िर ऐसे जाबाज़ पुलिस ऑफ़िसर को ये अवॉर्ड क्यों नहीं दिया गया.
यहां तक कि उनके प्रमोशन्स में भी अड़चनें आईं. ख़ैर, भदौरिया साल 2018 में डीएसपी पद से रिटायर हो गए. अब वोृ समाज सेवा और राजनीति के क्षेत्र में सक्रिय हैं.