आशा कार्यकर्ताओं ने पूरे कर्नाटक में 10 जुलाई से कार्य के बहिष्कार का फ़ैसला किया है. कोविड-19 की रोकथाम के लिए वॉरियर्स की तरह काम करने वाली आशा कार्यकर्ताओं ने कम वेतन और पर्याप्त सुरक्षात्मक गियर के अभाव के चलते ये निर्णय लिया है. उनकी राज्य सरकार से मांग है कि उन्हें वर्तमान मानदेय और अतिरिक्त प्रोत्साहन सहित 12,000 रुपये मासिक वेतन प्रदान किया जाए.
कर्नाटक में COVID-19 योद्धाओं ने 1.59 करोड़ घरों का सर्वेक्षण किया है. एक अनुमान के मुताबिक़, देशभर में कोरोना वायरस के चलते 20 आशा कार्यकर्ताओं की मौत हो चुकी है. वहीं, कुछ आशा कार्यकर्ताओं को कथित तौर पर उनके पड़ोसियों और रिश्तेदारों द्वारा परेशान भी किया गया, क्योंकि उन्हें डर था कि उनकी वजह से वो भी कोरोना की चपेट में आ जाएंगे.
कर्नाटक में 42 हज़ार आशा कार्यकर्ता हैं, जो राज्य में कोरोना महामारी से निपटने में बेहद अहम भूमिका निभा रही हैं. कोरोना के चलते उन पर का काफ़ी बोझ है. वो एक तरफ़ लोगों को संक्रमण से बचने के उपायों के बारे में शिक्षित कर रही हैं तो वहीं, दूसरी ओर क्वारंटीन घरों का निरीक्षण और संक्रमितों के संपर्क में आने वाले लोगों का पता भी लगा रही हैं. इसके साथ ही वो टेस्टिंग में भी सहायता दे रही हैं.
आशा कार्यकर्ताओं की ओर से चेतावनी दी गई थी कि अगर उनकी मांगे पूरी नहीं हुईं तो वो शुक्रवार से हड़ताल पर चली जाएंगी. कांग्रेस प्रदेश अध्यक्ष डी.के. शिवकुमार ने कहा था कि पार्टी इस हड़ताल का पूरा समर्थन करेगी. उन्होंने बताया था कि आशा कार्यकर्ताओं के एक प्रतिनिधिमंडल ने उनसे मुलाकात कर हड़ताल को समर्थन देने का अनुरोध किया था. कांग्रेस की तरफ़ से कहा गया कि अभी उन्हें 4 हज़ार राज्य की ओर से और 2 हज़ार केंद्र की तरफ़ से वेतन मिलता है, पार्टी की मांग है कि उन्हें न्यूनतम 12 हज़ार रुपये मासिक वेतन मिले.
हालांकि, कर्नाटक के स्वास्थ्य मंत्री बी श्रीरामुलु ने आशा कार्यकर्ताओं से कार्य बहिष्कार नहीं करने का अनुरोध किया था. साथ ही आश्वासन दिया कि उनकी मांगों को पूरा किया जाएगा. निश्चित तौर पर महामारी के इस दौर में इतने बड़े वर्क़फ़ोर्स का हड़ताल पर जाना सरकार के लिए चिंता का विषय है.
बता दें, कर्नाटक में 31 हज़ार से ज़्यादा लोग कोरोना की चपेट में आ चुके हैं. वहीं, कुल 488 मरीज़ों की अब तक मौत हो चुकी हैं.