पूर्व राष्ट्रपति, कलाम ने कहा था कि सपने वो नहीं होते जो आप नींद में देखते हैं, सपने वो होते हैं जो आपको सोने नहीं देते. कुछ ऐसी ही कहानी है रंजीत रामाचंद्रन की. रंजीत की ज़िन्दगी भर की जद्दोजहद का फल उसे बीते 5 अप्रैल, 2021 को मिला. 

ये भी पढ़िए- जो ड्राइवर कभी IIM अहमदाबाद में अपने बॉस को लेकर जाता था, आज उसका बेटा वहां पढ़ने जा रहा है 

Facebook

कौन है रंजीत रामाचंद्रन 

कुछ दिनों पहले सोशल मीडिया पर एक पोस्ट आई. Ranjith R Panathur नामक शख़्स ने मलयालम में एक पोस्ट डाला और ये कहानी वायरल हो गई. इस पोस्ट में एक मिट्टी का घर था, छोटा सा, टूटा-फूटा सा. घर पर छत के नाम पर काले रंग का तिरपाल लगा था. ये घर है IIM रांची में पढ़ाने के लिये नियुक्त किये गये रंजीत रामाचंद्रन का. इस घर में रंजीत के माता-पिता, 2 छोटे भाई-बहन रहते थे. रंजीत के पिता दर्ज़ी हैं और मां मनरेगा मज़दूर. रंजीत को पढ़ाने के लिये उन्होंने आकाश-पाताल एक कर दिया. ये परिवर केरल के कासारगोड (Kasaragod) से है.  

Facebook

कहानी संघर्ष की 

क्राइस्ट कॉलेज, बेंगलुरू (Christ College, Bengaluru) में असिस्टेंट प्रोफ़ेसर रंजीत (Assistant Professor Ranjit) को पढ़ाते 2 महीने ही हुए थे कि उन्हें IIM, रांची में पढ़ाने का लेटर मिला. The Indian Express के एक लेख के अनुसार उच्च माध्यमिक (Higher Secondary) की परीक्षा पास करने क बाद रंजीत अपने परिवार की आर्थिक तौर पर मदद करना चाहता था. रंजीत को BSNL लोकल टेलिफ़ोन एक्सचेंज में 4000 रुपये मासिक वाली नाइट वॉचमैन (Night Watchman) की ड्यूटी मिल गई. इसके साथ ही रंजीत ने अपने गांव के पास के Pious Xth College, राजापुरम में इकोनॉमिक्स में डिग्री कोर्स में दाखिला लिया. दिन में रंजीत कॉलेज जाता और रात में टेलिफ़ोन एक्सचेंज पर ड्यूटी करता. 

रंजीत ने पोस्ट ग्रैजुएशन (Post Graduation) सेन्ट्रल यूनिवर्सिटी, कासारगोड से किया. BSNL एक्सचेंज को रंजीत ने स्टडी रूम (Study Room) और अपने रहने का कमरा बना लिया था. पोस्ट ग्रैजुएशन के बाद रंजीत को IIT-Madras से Phd करने का मौका मिला. IIT Madras में ऐंट्री के समय रंजीत को सिर्फ़ मलायलम आती थी और अंग्रेज़ी में बात-चीत करना भी नहीं आता था. वो कासरगोड से बाहर गया था.  

Facebook

IIT Madras में प्रोफ़ेसर्स ने की मदद 

एक वक़्त आया जब रंजीत ने पढ़ाई छोड़ने का फ़ैसला कर लिया था लेकिन फिर भी उन्होंने संघर्ष जारी रखा. IIT Madras के प्रोफ़ेसर डॉ. सुभाष शशिधरण और प्रोफ़ेसर वैदेही ने रंजीत की मदद की. रंजीत ने Indian Express के साथ बात-चीत में बताया कि प्रोफ़ेसर सुभाष ने उसे गाइड किया और कोर्स न छोड़ने के लिये प्रेरित किया. अगस्त 2020 रंजीत को इकोनॉमिक्स में Phd मिली और वो डॉ. रंजीत बन गये.

IIT Madras में रंजीत ने न सिर्फ़ स्टाइपेन्ड (Stipend) पर गुज़ारा किया, बल्कि उसमें से कुछ बचत करके घर भी भेजना शुरू किया.  
Mathrubhumi के अनुसार, रंजीत ने जापान और जर्मनी में आयोजित अंतर्राष्ट्रीय कॉन्फ़्रेंस में भी पेपर प्रेज़ेंट किये हैं. 

रंजीत की कहानी न सिर्फ़ प्रेरणादायक है, बल्कि एक अलग तरह की सकारात्मक ऊर्जा से भी भरी हुई है.